
विश्वविद्यालय में हिंदी दिवस पर कवि सम्मेलन का किया आयोजन
बलिया. हिंदी हमारी राजभाषा है. यह लोक की भी भाषा है. इसके साथ ही ब्रज, अवधी, भोजपुरी, बुन्देली, बघेली भी हमारी लोक भाषाएँ हैं, जिन्हें प्रदेश में अलग-अलग जगहों पर बोला जाता है.
उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ (संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश) एवं जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया के संयुक्त तत्वावधान में हिन्दी दिवस पर एक वृहद ‘लोक भाषा कवि सम्मेलन’ का आयोजन किया गया. जिसमें हिन्दी के साथ ही ब्रज, अवधी, भोजपुरी, बुन्देली तथा बघेली भाषाओं के कई कवियों द्वारा काव्य पाठ किया गया. प्रस्तुत कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि जिलाध्यक्ष, भाजपा, बलिया श्री जयप्रकाश साहू जी रहे.
कार्यक्रम की शुरुआत नीलम काश्यप जी की माँ सरस्वती जी की वंदना हुई. उसके बाद रीवां से बघेली भाषा का प्रतिनिधि करते डॉ. उमेश मिश्र ‘लखन’ ने प्रेम से जुड़ा अपना काव्य पाठ किया ‘जउन आपन ना होय त जान न लगावा, दूसरों के भीति मकान न लगावा’ का लोगों ने तालियों से स्वागत किया. उसके बाद ब्रज भाषा के कवि अशोक ‘अज्ञ’ जी द्वारा कृष्ण भक्ति के अंतर्गत ‘ब्रज प्रेम भक्ति को लडुआ है, चखियों पर छुरों मति करियो’ को दर्शकों ने खूब पसंद किया.
भोजपुरी भाषा को अंगीकार किये हुए बलिया के कवि व गीतकार ब्रजमोहन प्रसाद ‘अनारी ‘ जी ने राम और लखन के वन गमन के प्रसंग को भावपूर्ण गीत के रूप में प्रस्तुत किया जिसका दर्शकों द्वारा तालियों से स्वागत किया गया.
अवधी भाषा की परिपाटी को जीवंत रखने वाले प्रयागराज से आये कवि व गीतकार अशोक ‘बेशरम’ जी द्वारा हिंदी दिवस को समर्पित ‘सावन के कजरी भूलना, अउर फागुन फाग की तान है हिंदी. मीरा की बानी, कबीर के सारथी है, छन्द भरी रसखान है हिन्दी’ को दर्शकों ने खूब पसंद किया. उसके बाद बेशरम जी ने अपने अंदाज में दर्शकों को हर्षोल्लास से परिपूर्ण कर दिया.
उसके बाद मंच संचालन कर रहे रायबरेली से आये युवा ओजस्वी कवि अभिजीत मिश्रा ‘अकेला’ द्वारा
देशभक्तिपूर्ण शब्दों में लिपटा काव्य पाठ किया “भव्यता और दिव्यता के साथ साथ चलते है देषी पदचाप भूल जाते है. इंच-इंच भूमि का नाप भूल जाते हैं, इतना तो भारतीय माप भूल जाते हैं’ को दर्शकों का पूरा समर्थन मिला.
बुन्देली भाषा का प्रतिनिधित्व करतीं नीलम काश्यप जी ने अपने गीत ‘मोरी नन्नदी नदी में नहाय, लहरियां बलि बलि जाय’ को उपस्थित सभी श्रोताओं ने तालियों से नवाजा.
अंत मे कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे आज़मगढ़ से पधारे प्रसिद्ध कवि भालचंद्र त्रिपाठी ने देश के सम्मान में अपनी काव्य रचना रखी ‘देश का मान आहत हो जिस बात से, बात ऐसी हो तो चुप रहेंगे नही’ से दर्शकों के सामने अपनी बात रखी.
कार्यक्रम में अतिथि स्वागत अतुल द्विवेदी, निदेशक, उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान, लखनऊ द्वारा, संचालन डाॅ. प्रमोद शंकर पाण्डेय द्वारा एवं धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय की शैक्षणिक निदेशक डॉ. पुष्पा मिश्रा जी द्वारा किया गया. उक्त कार्यक्रम में डाॅ. प्रवीण नाथ यादव, डाॅ. अभिषेक मिश्र, डाॅ. संदीप यादव, डाॅ. अजय चौबे, डाॅ. तृप्ति तिवारी आदि प्राध्यापक, कर्मचारी एवं परिसर के विद्यार्थीगण मौजूद रहे.
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आशीष दुबे की रिपोर्ट