संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा का 5वां दिन
भाव विभोर होकर श्रोता खूब झूमें, नाचे
बलिया। सांसारिक धन खर्च करने पर कम होता है. लेकिन ईश्वर रूपी धन जितना खर्च होता है उतना ही बढ़ता जाता है. सांसारिक धन भी सद कार्यो में इस्तेमाल किया जाय तो वह बढ़ता है. धन के साथ भक्ति होनी जरूरी है. क्योंकि भक्ति रहित धन विनाश की ओर ले जाता है. कोई व्यक्ति जवान हो और उसके पास काफी धन हो लेकिन उसे सत्संग नही मिले, तो वह बिगड़ जायेगा. वह मानी हुई बात है.
दुनिया के अन्य कर्मो में घाटा भी हो सकता है लेकिन ईश्वर का नाम लेने पर लाभ ही लाभ होता है. इस लिए भगवान का नाम जपते रहना चाहिए. सही अर्थों में धनवान वही है जो धन से समाज और राष्ट्र की सेवा करता है.
पं0 श्रीकांत जी व्यास ने शनिवार को टाउनहाल में श्री राधा माधव सेवा मण्डल एवं मस्ती श्री वृंदावन धाम की की तरफ से आयोजित सप्ताहव्यापी संगीतमयी श्रीमद भागवत कथा के 5 वें दिन का प्रवचन सुनाते हुए ये उद्द्गार व्यक्त किये. उन्होंने कहा कि गो धन को सबसे श्रेष्ठ कहा गया है. गाय जितना देती है उतना कोई भी नही दे सकता है. नंद बाबा के यहां नौ लाख गाये थी. जब उन्होंने पुत्र होने की खबर सुनी तो दो लाख गाये दान कर दी. भारत ऋषि और कृषि प्रधान देश है. जब तक गाये है तब तक भारत है. गाये नही रहेगी तो भारत भी नही रहेगा. गायों के खत्म होने पर यह देश भी खत्म हो जायेगा. किसान के अन्न और ऋषि के तप से ही खुशहाली आती है. भगवान को पाना हो या सही अर्थों में बड़ा आदमी बनना हो तो मन को बड़ा बनाये. छोटे से तालाब में पत्थर का टुकड़ा फेंका जाता है, तो हलचल मच जाती है. लेकिन वही पत्थर का टुकड़ा जब विशाल समुद्र में फेंका जाता है तो उसमें ऐसा समा जाता है, जैसे कुछ हुआ ही नही हो. ईश्वर का आह्वाहन भी छोटे मन से नही हो सकता है. ईश्वर को मनाना है तो खुद को बड़े मन वाला बनाये. नंद बाबा महामना थे. वे गो की सेवा करते थे. शास्त्रों में कहा गया है कि गो की सेवा करने वाला निरवंश नही रह सकता. महाराज दिलीप ने नंदिनी गाय की सेवा की तो उन्हें रघु जैसा प्रतापी पुत्र हुआ. मताएं अपने बच्चों को विदेश भेजती है तो कहती है बेटा खाने पीने का ध्यान रखना. यही वे भूल जाती है कि विदेश जाने वाले पुत्र से कहना चाहिए बेटे अपने मन का ख्याल रखना. मन वश में रहेगा. मन को वश में रखने वाला व्यक्ति को किसी प्रकार की तकलीफ नही होती.
शनिवार को कथा के दौरान कृष्ण और उनके सखाओं द्वारा मटकी फोड़ और माता द्वारा उनको रस्सी में बांधने का मंचन किया गया वही .