
इलाहाबाद। केंद्र सरकार द्वारा नोटबन्दी के जरिए नागरिक स्वतंत्रता का हनन किया गया है. इससे धर्म की भी क्षति होगी. व्यक्ति अपना धन अपनी इच्छानुसार नहीं खर्च करेगा तो कमाएगा क्यों? लोगों को आत्मिक संतुष्टि धर्म करने से होती है. केवल परिवार के पोषण से नहीं. अपना ही धन खर्च करने के लिए नहीं मिलेगा तो कोई यज्ञ, दान, तीर्थाटन कैसे करेगा? ऐसा कहना है वाराणसी के श्रीविद्या मठ में जगद्गुरु शंकराचार्य ज्योतिष्पीठाधीश पूज्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती का. शंकराचार्य जी ने बृहस्पतिवार को पत्रकार वार्ता में ये बातें कही.
कहा कि भारत की जनता परलोक में विश्वास रखती है. परलोक बिगाड़ने वाले को सहन नहीं करती. शंकराचार्य जी ने कहा कि कैशलेस व्यवस्था वैकल्पिक ही ठीक है. इसे अनिवार्य करने से जनता की आर्थिक स्वतंत्रता छिन जायेगी. बैंक से रुपये निकालने की सीमा का विरोध करते हुए शंकराचार्य ने दृष्टान्त दिया कि कोई व्यक्ति अपना कमरा भीतर से बन्द कर चाहे जितने समय तक सुखपूर्वक रह लेता है, किन्तु उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई बाहर से एक मिनट के लिए भी बन्द कर दे तो सहन नहीं होता. वह दण्ड संहिता के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध हो जाता है.
जाने कितने लोग कैन्सर या अन्य गंभीर बीमारीसे ग्रसित होकर अस्पताल में भर्ती होंगे, उन्हे तत्काल लाखों रुपये की आवश्यक्ता होगी, किन्तु अपना ही पैसा बैंक से नहीं निकाल पा रहे होंगे. इसी प्रतिबन्ध के कारण रुपये की व्यवस्था न होने से जाने कितने रोगियों की मौत हो गयी. उन्होंने कहा कि दण्डशास्त्र का सार्वभौम सिद्धांत है कि चाहे 100 अपराधी बच जाए किन्तु एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिये. किन्तु यहां तो उलटा हो रहा है. एक अपराधी को पकड़ने के लिये सौ लोगों को सजा दे दिया और उस एक को पकड़ भी नहीं पा रहे.
शंकराचार्य जी ने एक और दृष्टान्त दिया कि किसी ने राजा से कह दिया कि तालाब में मगरमच्छ है, उससे प्रजा की जान को खतरा है. राजा के आदेश से मगरमच्छ पकड़ने के लिये तालाब का सारा पानी निकाल दिया गया. सारी मछलिया मर गयी, लेकिन मगरमच्छ नहीं मिला. राजा ने कहा तालाब में पुनः पानी भरो. मछलिया होंगी तो उन्हें खाने के लिये मगरमच्छ आयेगा, फिर पकड़ लिया जायेगा. कर्मचारीगण इसी प्रकार तालाब में बार-बार पानी भरते रहे, मछली पालते रहे, फिर तालाब सुखाते रहे, किन्तु मगरमच्छ नहीं मिला. मोदी भी ऐसा ही कर रहे हैं.
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शंकराचार्य जी ने कहा कि विधानसभा चुनाव में भाजपा को अधिक वोट मिल भी जाये तो इसका यह अर्थ नहीं कि नोटबन्दी पर जनता ने मुहर लगा दिया. जनता विकल्पहीनता की स्थिति में है. अन्य मुख्य दल या तो आपस में लड़ रहे हैं या उनमें सशक्त नेतृत्व का अभाव है. ऐसी स्थिति में भाजपा को यदि अधिक मत मिल जाये तो इसमें उसकी बहादुरी नहीं होगी.