6 अप्रैल के दिन ही शहीद मंगल पांडेय सुनाई गई थी फांसी की सजा लेकिन जल्लादों ने कर दिया था इनकार

दुबहड़,बलिया. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 29 मार्च 1857 को प्रारंभ करने का श्रेय बलिया के माटी के वीर सपूत शहीद मंगल पांडेय को जाता है. उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ उस समय बंदूक से गोली चलायी जब लोग ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में बोलने से भी डरते थे. उक्त बातें मंगल पांडेय विचार मंच के प्रवक्ता बब्बन  विद्यार्थी ने मंगलवार को विचार मंच के कैंप कार्यालय पर पत्रकारों से बातचीत में कही.

उन्होंने बताया कि 6 अप्रैल 1857 को ब्रिटिश हुकूमत के दौरान फौजी अदालत में मंगल पांडेय पर राजद्रोह एवं फौजी बगावत का दोषी करार देते हुए उन्हें फांसी देने का आदेश दिया था. 7 अप्रैल को तड़के उन्हें बैरकपुर छावनी में फांसी देने के लिए जल्लादों को बुलाया गया लेकिन जल्लाद उन्हें फांसी देने से इन्कार कर दिया, क्योंकि मंगल पांडेय की देशभक्ति के जल्लाद भी कायल थे.

आठ अप्रैल 1857को फांसी देने के लिए दुबारा कोलकाता से जल्लाद बुलाए गए. उन्हें यह नहीं बताया गया कि फांसी किसे देनी है ? 8 अप्रैल को प्रातः 5:30 बजे परेड ग्राउंड में कड़ी सुरक्षा के बीच मंगल पांडेय को फांसी पर लटका दिया गया.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE         

 

विद्यार्थी ने कहा कि देश को आजाद हुए 74 साल हो गये लेकिन आज भी अपराधमुक्त भारत नहीं बन पाया. देश को समृद्ध, गौरवशाली व अपराधमुक्त भारत बनाने के लिए चेतना शक्ति के स्रोत जागरूक युवाओं को आगे आने की आवश्यकता है.

इस मौके पर मंच के अध्यक्ष केके पाठक, डॉ हरेंद्रनाथ यादव, डॉ सुरेशचंद्र, पन्नालाल गुप्ता मस्ताना, गणेशजी सिंह, विश्वनाथ पांडेय, अन्नपूर्णा नंद तिवारी मौजूद रहे.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE