
विकास का बाट जोहता शहीद मंगल पांडे इंटर कॉलेज नगवा
वर्षों से इंटरमीडिएट स्तर की मान्यता के लिए कई वर्गों में किया गया आवेदन परंतु नहीं मिली मान्यता
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गुलामी के खिलाफ बिगुल फूंक कर स्वाधीनता आंदोलन की बलिबेदी पर प्राणों की आहुति देने वाले अमर शहीद मंगल पांडे जीते जी अंग्रेजी हुकूमत की आंखों में खटकते रहे. मरने के बाद भी अपनों द्वारा अपने शासनकाल में भी कम उपेक्षित नहीं हुए हैं. आजाद भारत में भी लगभग डेढ़ दशक गुमनाम बने रहे.
वर्ष 1963 में जैसे-तैसे याद आई इस अमर क्रांति दूत की. तब उनके पैतृक गांव नगवा में स्थापित जूनियर हाई स्कूल को 1857 की क्रांति के महानायक की याद के लिए चुना गया.
इस विद्यालय को उसी वर्ष हाई स्कूल तक की मान्यता भी मिल गई. यह विद्यालय 1960 में जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर नगवा गांव में गुरु प्रसाद दुबे, दुखीराम पाठक, अमरनाथ मिश्र द्वारा स्थापित किया गया. गुरु प्रसाद दुबे पहले प्रबंधक बनाए गए. उनके बाद क्रमशः रमाशंकर सिंह, सुरेश कुमार मिश्रा, अमरनाथ मिश्र, मैनेजर सिंह, नागेंद्र पाठक, रमाशंकर सिंह (दूसरी बार), मदन मोहन पांडेय, प्रदीप कुमार पाठक, बृकेश कुमार पाठक प्रबंधक चुने गए.
वहीं पहले प्रधानाचार्य राम नगीना लाल बाद में क्रमशः विक्रमादित्य पांडेय, पारसनाथ उपाध्याय, परमात्मा नंद तिवारी, प्रदुम्न सिंह के के सिंह एवं वर्तमान में रवि राय प्रधानाचार्य के रूप में कार्यरत है.
वर्ष 1971 में विद्यालय को 12वीं तक की मान्यता मिली लेकिन केवल कला वर्ग की. वर्ष 1990- 91 में व्यावसायिक शिक्षा के तहत इस विद्यालय में खाद्य प्रसंस्करण व ऑटोमोबाइल की शिक्षा चालू कर दी गई.
वक्त के साथ-साथ विद्यालय की बागडोर थामने वाले हाथ भी बदलते रहे लेकिन यह विद्यालय आज भी पूर्ण रूप से विकास की बाट जोह रहा है हालांकि अन्य कई विद्यालयों की तुलना में शहीद मंगल पांडे इंटर कॉलेज भवन के मामले में बेहतर है लेकिन वह भव्यता पाने के लिए तरस रहा है जो किसी अमर शहीद की इकलौती निशानी की तरह होनी चाहिए.
वहीं क्षेत्रीय जन यहां हाई स्कूल में कृषि तथा इंटरमीडिएट में विज्ञान, वाणिज्य, कृषि वर्ग की व्यवस्था की कमी महसूस की जा रही है. इसके लिए माध्यमिक शिक्षा परिषद में सारी औपचारिकताएं पूरी करके आवेदन दे दिया गया है परंतु उत्तर प्रदेश सरकार 1857 क्रांति के अग्रदूत के नाम से स्थापित इस विद्यालय को इन वर्गों में मान्यता देना उचित नहीं नहीं लग रहा है.
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