धारा 370 हटाये जाने के करीब एक माह बाद NSA अजित डोभाल मीडिया से मुखातिब हुए. डोभाल ने J&K के नेताओं की नजरबंदी को न्यायसंगत ठहराते हुए ‘सुरक्षात्मक’ कदम बताया.
बहरहाल, मामला इतना उलझ चुका है कोई भी इसपर दावे के साथ कुछ नहीं कह सकता. फिलहाल J&K में लोग सामान्य जीवन जीने लगे हैं, ऐसा तो नहीं ही कहा जा सकता. आज तक वहां की स्थिति जैसे एक पेंडूलम जैसी ही है.
एक तरफ तो वहां स्थिति सामान्य होने का दावा किया जा रहा है और दूसरी तरफ प्रतिबंध भी कायम है. अब प्रतिबंध न हटाने के लिए पाकिस्तान को ढाल बनाया जा रहा है.
अगर ऐसी आशंका है तो सरकार की कार्यविधि पर सवाल उठता है. यह तो जैसे पल्ला झाड़कर निकल लेने जैसी बात हो गयी. अगर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु ने अपने शासन में शेख अब्दुल्ला को नजरबंद किया, तो नरेंद्र मोदी के शासनकाल में PDP नेता महबूबा मुफ्ती और NC के उमर अब्दुल्ला वगैरह को नजरबंद किया गया.
इस कदम को यह कहकर जायज ठहराते हैं कि लोगों के बीच आने पर उनको संबोधित करेंगे जिससे हालात बिगड़ सकते हैं. यानी कि जो नेता नजरबंद हैं उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता. सामान्य हालात करने की दिशा में केंद्र सरकार के कदम में वह रास्ता नहीं दिखता जो सामान्य स्थिति की ओर जाता हो.
अगर सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ मंत्र पर ईमानदारी से अमल करती है तो समस्या सुलझने के रास्ते खुल सकते हैं.