कुलदीप नैयरः चंद्रशेखर कहां गच्चा खा गए और वीपी सिंह बाजी मार ले गए

शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक
विजय शंकर पांडेय

कुलदीप नैयर भारतीय उपमहाद्वीप की पत्रकारिता के शिखर पुरुष थे. उन्हें भरोसा था कि एक न एक दिन दक्षिण एशियाई देश अपनी अलग अलग पहचान को बरकरार रखते हुए यूरोपीय संघ की तर्ज पर साझा संघ बनाएंगे. उनके ही शब्दों में “जिंदगी एक लगातार बहती अंतहीन नदी की तरह है, बाधाओं का सामना करती हुई, उन्हें परे धकेलती हुई और कभी कभी ऐसा न कर पाते हुए भी….. आखिर तमाशा जारी रहना चाहिए. मैं इस मामले में महान उर्दू शायर गालिब से पूरी तरह सहमत हूं – शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक.” वे लोकतांत्रिक व मानवीय अधिकारों के लिए लड़ने वाले योद्धा के रूप में भी याद किए जाएंगे. इमरजेंसी के दौरान अपनी गिरफ्तारी को वे अपने जीवन का टर्निंग प्वाइंट मानते रहे. उन्होंने लिखा भी है कि तब व्यवस्था के प्रति आस्था को गहरा झटका लगा था. बेशक वे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पहरुआ थे. उन्हें सियासी रंगमंच के पटकथा लेखन में भी महारत हासिल थी.

भारत के शैशवास्था से लेकर अब तक की गतिविधियों के वे चश्मीदद गवाह थे. वे उन गिने चुने पत्रकारों में शामिल थे, जिन्हें देश की नब्ज की हरकतों की भी भनक थी. लाल बहादुर शास्त्री और विश्वनाथ प्रताप सिंह के प्रधानमंत्री बनने में उनकी भूमिका किसी से छुपी नहीं रही. 1956 में महबूबनगर रेल हादसे में 112 लोगों की मौत हुई थी. इस पर लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दे दिया. इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने स्वीकार नहीं किया. तीन महीने बाद ही अरियालूर रेल दुर्घटना में 114 लोग मारे गए. उन्होंने फिर इस्तीफा दे दिया. उन्होंने इस्तीफा स्वीकारते हुए संसद में कहा कि वह इस्तीफा इसलिए स्वीकार कर रहे हैं कि यह एक नजीर बने. इसलिए नहीं कि हादसे के लिए किसी भी रूप में शास्त्री जिम्मेदार हैं.

अपनी आत्मकथा में नैयर ने इस बात को माना है कि न्यूज एजेंसी यूएनआई ज्वाइन करने के बाद भी वो अनौपचारिक रूप से लाल बहादुर शास्त्री को उनकी छवि मजबूत करने के बारे में सलाह देते रहते थे. नेहरू के निधन के बाद पूरा देश शोक में डूबा था. उसी वक्त कुलदीप नैयर ने यूएनआई के जरिए यह खबर दी – पूर्व वित्त मंत्री मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री पद की दौड में उतरने वाले पहले शख्स हैं. बगैर पोर्टफोलियो के मंत्री लाल बहादुर शास्त्री भी प्रधानमंत्री पद के दूसरे उम्मीदवार माने जा रहे हैं, हालांकि वो अनिच्छुक बताए जा रहे हैं. नैयर के मुताबिक उनकी इस खबर से मोरारजी देसाई को काफी नुकसान हुआ और वे उस वक्त प्रधानमंत्री नहीं बन पाए.

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नैयर को माने तो लाल बहादुर शास्त्री ने उनसे कहा था कि वे उतने साधु नहीं हैं, जितना कि आप मेरे बारे में कल्पना करते हैं. कौन भारत का प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहेगा? यह बात उन्होंने तब कही थी, जब नैयर ने उनसे कहा था कि लोग यह सोचते हैं कि शास्त्री नेहरू के इतने पक्के अनुयायी हैं कि वे खुद नेहरू की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी के नाम का प्रस्ताव कर देंगे. हालांकि इस बात पर लालबहादुर शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री ने आपत्ति जताई थी. उनका कहना था कि उनके पिता कभी सत्ता के लिए लालायित नहीं रहे. अनिल शास्त्री का दावा था कि पुस्तक के अंशों से ऐसा लगता कि उनके पिता नहीं चाहते थे कि इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनें, जबकि सच्चाई यह है कि वे उनसे मिलने वाले और प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम प्रस्तावित करने वाले पहले व्यक्ति थे.

कहा जाता है कि 1989 के आम चुनाव के नतीजे आने के बाद संयुक्त मोर्चा संसदीय दल की बैठक में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने चौधरी देवीलाल का नाम नेता के तौर पर प्रस्तावित किया. चंद्रशेखर ने उनके प्रस्ताव का समर्थन किया और देवीलाल को नेता मनोनीत कर दिया गया. मगर ऐन मौके पर पूर्व निर्धारित योजना के तहत ड्रामा हुआ. देवीलाल धन्यवाद देने के लिए खड़े ज़रूर हुए, लेकिन सहज भाव से उन्होंने कहा, “मैं सबसे बुजुर्ग हूं, मुझे सब ताऊ कहते हैं, मुझे ताऊ बने रहना ही पसंद है और मैं ये पद विश्वनाथ प्रताप को सौंपता हूं.” राज्य सभा के उपसभापति और वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश बताते हैं, “विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का काम अकेले और अकेले देवीलाल का था. क्योंकि जब चुनाव परिणाम आ गया था तो चंद्रशेखर ने कहा कि वे संसदीय दल का नेता बनने के लिए चुनाव लड़ेंगे. ऐसे में विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपनी जीत का भरोसा नहीं रहा, उन्होंने देवीलाल के सामने चुनाव लड़ने से ही इनकार कर दिया था.” अपनी आत्मकथा में कुलदीप नैयर का दावा किया है कि वीपी सिंह के जनता दल के नेता के चुनाव के वक्त जो यह हाई वोल्टेज ट्रामा हुआ, उसकी स्क्रिप्ट उन्होंने लिखी थी. बाद में वीपी सिंह ने उन्हें ब्रिटेन का उच्चायुक्त नियुक्त कर इसका इनाम भी दिया.

विनम्र श्रद्धांजलि…सादर नमन

(लेखक के फेसबुक वाल से साभार)

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