सिपाहियों का रवैया यही रहा तो लोग वोट डालने नहीं जाएंगे

बैरिया (बलिया)। एक तरफ जहां चुनाव आयोग आगामी विधानसभा चुनाव में शत प्रतिशत मतदान कराने के लिए जन जागरूकता अभियान चला रहा है. जिले में जगह-जगह गोष्ठियां, मानव श्रृंखला व तरह-तरह के आयोजन किए जा रहे हैं, ताकि लोग जागरुक होकर मतदान करें. वही पुलिस विभाग लोगों को पाबंद करने के कहीं एक जगह बैठकर नाम पूछ कर सूची बना ले रहे हैं. इससे गांव के भोले भाले लोग पाबंद हो जाने पर भय ग्रस्त हो रहे हैं. इस तरह की कार्रवाई से मतदान केंद्र पर लोग वोट करने कम पहुंचे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा.

भय मुक्त माहौल में वोट डलवाने की बजाय सिस्टम ही खौफ पैदा कर रहा 

चुनाव में लोगों को पुलिस द्वारा पाबंद करने की अवधारणा यही है कि अपराधी, दबंग, झगड़ालू, मतदान केंद्र पर विवाद करने वाले, लोगों को मतदान करने से रोकने वालों या व्यक्ति विशेष को वोट देने के लिए दबाव बनाने वालों को पुलिस खोज कर चिन्हित करें और उन्हें पाबंद करें. ताकि लोग निर्भय होकर मतदान करें. मतदान शांतिपूर्ण संपन्न हो. विवादास्पद परिस्थितियां उत्पन्न होने पर अनुशासन बनाए रखने के लिए प्रत्याशी, उनके परिवार के सदस्य, उनके समर्थक भी पाबंद किए जाते रहे हैं. इस नियम की यही अवधारणा है, लेकिन वास्तव में पुलिस ऐसा कर रही है? इस पर सवालिया निशान लग रहे हैं.

जो आज तक थाने नहीं गया और ना ही पुलिस उसके दरवाजे पर कभी आई, वह भी पाबंद

उदाहरण स्वरूप बैरिया थाना क्षेत्र के लगभग 200 मतदाताओं वाले देवकी छपरा गांव को लिया जा सकता है. इस गांव के लिए बनाई गई पुलिस की सूची में शिक्षक जो चुनाव ड्यूटी में जाते हैं, गांव के ऐसे भोली-भाली मानसिकता वाले लोगों को शामिल किया गया है. जिनका ना तो किसी दलगत राजनीति में सक्रियता रही है, ना किसी साधारण विवाद में भी थाने तक गए हैं, ना ही ग्राम पंचायत सदस्य पद तक के लिए कभी प्रत्याशी बने हैं और ना ही पूर्व में उनके यहां कभी पाबंद लोगों की सूची लेकर कभी सिपाही आया है. उस गांव में सूची लेकर हस्ताक्षर बनवाने पहुंचे सिपाही के हाथ में पाबंदी लिस्ट में अपना नाम आने पर लोग आश्चर्यचकित होकर सामूहिक रूप से हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिए और कहा कि हम मतदान करने ही नहीं जाएंगे. अगर हमसे सरकार को वोट डलवाना ही होगा तो हमारे यहां पाबंद लोगों के दरवाजे दरवाजे वोट देने की व्यवस्था पुलिस अपने देख रेख मे कराए.

लोगों ने अपना जमानत भी कराने से इंकार कर दिया है

यह भी आरोप लगाया कि इसमें एक जाति विशेष के लोगों को ही पाबंद किया गया है. जिनका कभी किसी भी विवाद से वास्ता ही नहीं रहा है. चुनाव की तो बात ही अलग है. लोगों ने अपना जमानत भी कराने से इंकार कर दिया. सूची में शामिल प्राथमिक विद्यालय शिक्षक कामेश्वर मिश्र ने तो यहां तक कहा कि भाई आपने तो हमें पाबंद कर दिया. इसी का हवाला देते हुए हम चुनाव ड्यूटी भी नहीं करेंगे. मतदान के दिन अपने घर में रहेगे. लोगों का आरोप था कि एक पार्टी विशेष का कार्यकर्ता जो हलके के सिपाहियों के आगे पीछे चलता रहता है. उसी से पूछ कर एक जगह बैठ कर ही यह सूची तैयार कर ली गई है. इशारे पर पुलिस ने यह सूची तैयार किया है. उसकी मंशा है कि यहां के लोग डर कर वोट देने ही नहीं जाएं. इससे उसकी पार्टी को लाभ होगा.

जाति विशेष के प्रतिष्ठित परिवारों को चुन चुन कर पाबंद किया जा रहा 

एक जाति विशेष के सम्मानित परिवारों का चुन-चुन कर सूची में नाम लिखना कहां का न्याय है. चुनाव आयोग व भारतीय कानून व्यवस्था की मनसा के प्रतिकूल एक जगह बैठ कर हलके के सिपाही किसी एक अपने चहेते से पूछकर सूची बना रहे हैं. देवकी छपरा गांव की सूची तो बानगी भर है. लगभग सभी गांव का यही हाल है, जिसका असर यह है कि शरीफ गरीब व गांव के दबे कुचले लोग चुनाव के दिन मतदान केंद्र की तरफ जाने से भी कतराएंगे. आश्चर्य तो यह है कि ऐसी सूची को लेकर गांव में पहुंचने वाले सिपाहियों से जब गांव के लोग सूची गलत होने की बात कहते हैं, तो यही कानून के रखवाले सिपाही लोगों को यह समझाते हैं कि यह सूची कुछ नहीं है. कोई प्रत्याशी सामूहिक रुप से वकील खड़ा करा कर आपकी जमानत करा देगा. इस सूची से कुछ नहीं होगा. यानी कानून के मकड़जाल में उलझाकर फिर कानून को हल्का बनाकर प्रस्तुत करने की कवायद भी चल रही है. पुलिस अपने दायित्वों का खुद निर्वहन करने के बजाय दूसरों से पूछकर काम कर रही है.

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