काश! निर्वाचन आयोग सोर्स आफ इनकम के साथ प्रोसेस ऑफ बिज़नेस भी डिक्लेअर कराता: राघवेन्द्र

मस्कट में इंजीनियर बलिया मूल के राघवेन्द्र प्रताप सिंह की कलम से

देश में चुनाव की लहर है. एक तरफ राजनीतिक पार्टियां अपनी अपनी रणनीति बनाने, उम्मीवारों के चयन और जनता के बीच जाने में व्यस्त है. वहीं कुछ जागरूक लोग ये जानने में काफी रुचि रख रहे है कि किस राजनेता व पार्टी की संपत्ति में पिछले पांच साल में कितने प्रतिशत की इजाफा हुआ है.
लोकतंत्र के इस माहपर्व पर देश के लोगों को ये मौका मिलता है कि अपने राजनैतिक पार्टियों और राजनेताओं की डिक्लेरेशन को देखे.
ये मुद्दा न्यूज़ में भी रहता है. लेकिन उसे उस लेवल का महत्व नही मिलाता जो मिलना चाहिए.

निर्वाचन आयोग के दिशा निर्देश पर जो डिक्लेरेशन हमारे राजनेताओं के द्वारा दिया जाता है, वह निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर है. लेकिन उसको देख कर ऐसा लगता है कि ये काफ़ी मिनीमम रखा गया है.
स्रोतऑफ इनकम भी घोषित है. लेकिन विडम्बना यह है कि वही काम अगर कोई और करे तो वह उस के आस पास के बराबर भी आय अर्जित नही कर पता है.

कॉरपोरेट हाउस भी इस लेवल की ग्रोथ प्राप्त नही कर पाते, जहां हजारों लोग काम करते हैं, जो प्रत्येक 5 वर्ष में 100% का ग्रोथ रजिस्टर्ड करें.
जबकि कॉरपोरेट हाउसेस श्रेष्ठ पेशेवर को हायर करते है, और हमारे कुछ राजनेता अकेले ही सब कर लेते है.
कश! निर्वाचन आयोग ये भी अनिवार्य कर देता की स्रोत ऑफ इनकम के साथ साथ प्रोसेस ऑफ बिज़नेस भी डिक्लेअर करना पड़ता.

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