यहां तो बाल मजदूरों के बूते हो रहा है घाघरा के कटान से बचाव का जुगाड़

दियरांचल के नवकागांव व रिगवन छावनी गांव के पास हो रहे कटान से तटवर्ती ग्रामीण दहशत में

बांसडीह से रविशंकर पांडेय

घाघरा के बढ़ते जलस्तर से दियरांचल के नवकागांव व रिगवन छावनी गावं के पास हो रहे कटान से तटवर्ती ग्रामीण दहशत में है. वहीं कटान को रोकने के लिए विभाग द्वारा बांस के चोंगे में ईंट के टुकड़े को मजदूरों से बोरी में कार्य कराया जा रहा है.

लगातार हो रही वर्षा के कारण घाघरा नदी का जलस्तर दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. बढ़ते जलस्तर से तटवर्ती गांव के तरफ घाघरा का रूख बढ़ता जा रहा है. तटवर्ती गांवों को बचाने के लिए पहले से बने प्रधानमंत्री सड़क से महज 100 मीटर की दूरी पर किसानों की उपजाऊ जमीन को घाघरा नदी निगलती जा रही है.

तटवर्ती नवकागांव व रिगवन छावनी पर संकट गहरा गए हैं. गांव को बचाने के लिए बाढ़ विभाग 30 जून से 7 सौ मीटर की दूरी को तीन कन्टेक्टरों में बांटकर कटान रोधी कार्य बाँस के चोंगे बनाकर उसमें प्लास्टिक की बोरियों में ईंट के टुकड़े भरकर कराया जा रहा है. गौरतलब है कि यह सब बाढ़ विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में हो रहा है.

सबसे चौंकाने वाला तथ्य यह है कि एक तरफ सरकार की मंशा है कि बाहर से आए प्रवासी मजदूरों को अधिक से अधिक काम दिया जाय, लेकिन मौके पर 10 वर्ष से कम उम्र के बाल मजदूरों से दो रुपए प्रति बोरी भरने का लालच देकर काम लिया जा रहा है. बाल मजदूरों ने बताया कि दिन भर 100 बोरी ईंट के टुकड़े हम करीब 12 बच्चें भर लेते हैं. वहीं अन्य मजदूरों ने बताया कि एक चोंगे को बोल्डर सहित तैयार कर डालने के बाद प्रति चोंगा एक हजार रुपये मिलता है. बाल मजदूरी कराने के संबंध में मौके पर उपस्थित बाढ़ विभाग के एसडीओ इन्द्रासन कुमार गौतम ने बताया कि बच्चे स्वेच्छा से काम कर रहे हैं. इसमें कोई जोर जबरदस्ती नहीं है. गौरतलब यह भी है कि 10 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोरोना वायरस के जमाने में खुले में घूमना खतरे से खाली नहीं है. ऐसा स्वास्थ्य मंत्रालय का ही कहना है.

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