
कृष्ण देव नारायण राय
घुरहुआ करेजा पीट- पीट के रो रहा है. मुखिया जी ने चूतिया बनाया है. अगला चुनाव में इनकरा के छठी के दूध न याद दिला द कहिहें. बड़ा नीच है, हमके फंसा दिया और लल्लन की दुआरी पर हेंकड़ी झाड़ रहा था कि घुरहुआ के खूबे बुरबक बनाये है. अकेले में भेंटा जाई त डीह बाबा के किरिया मरबो करब सरऊ के. चार अक्षर पढ़ का लिहलन, अपना के तुलसी बाबा के दमाद बुझने लगे.
घुरहुआ बड़बड़ा रहा था और मुखिया जी के ख़ास दयाद चनरिका बाबू सुन रहे थे. एतना गबरू जवान अइसे रो रहा था, बात जरूर गम्भीर है. बाबू बोले का हुआ घुरहू! कौनो बात ह का? पहिले त डेरा गये. फिर हिम्मत बांध कर बोले- सरकार पइसा- पइसा के मोहताज आदमी से पइसा के मजाक कोई करता है का? बात साफ-, साफ कर घुरहू. बुझौअल मत बुझाव. सरकार मुखिया जी न जाने कहंवा से सुन के आये और कहे घुरहू बीआहे के कारड पर ढाई लाख मिलत ह.
दू हजार के पुरनका नोट के चार घण्टा लाइन में लग के नवका नोट कराये, जा के कारड छपवाये. गणेश जी फोटो भी लिफाफा पर बना रहा. बड़का बाजार के बैंक में गये, मनीजर साहब से मिले त कहे कौन भेजा है? मुखिया जी के नाम लिया तो भड़क गया. एक हजार गारी ओनके, तनिके कम हमके. पागल- वागल कुल बना दिया. पहली बार बैंक गये रहे, कउनो चिन्ह नही रहे थे. हमार हाल हीरा साव वाला हो गया रहा. जे देखे उहे मुस्किया रहा था. दू गो बहुरियो बैठी रहीं बैंक में उहो मुहे पर रुमाल रख के मुस्किया रहीं थी.
सरकार खून के घूंट पी के लौट आये. ढाई लाख के चक्कर में दू हजार डूब गया. उ का कहत रहे मुंशी जय जय लाल- ” न ख़ुदा ही मिला, न विसाले सनम,” उहे हाल होई गवा. फेनू न लड़ेंगे का चुनाव का. बरम बाबा के किरिया न जमानत जप्त करा दिये त कहिअ. हमहू कहे टीवी वाले त मेहररुअन से भी गये गुजरे निकले. अइसनो केहू आग लगाता है का. हाय रे घुरहुआ के दू हजार. ईश्वर ओकरे आत्मा के शांति प्रदान करे.
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द्रष्टव्य
इस व्यंग्य कथा के सभी पात्र, घटना एवं स्थान पूर्णतः काल्पनिक हैं. किसी भी तरह की समानता यक़ीनन एक संयोग मात्र है. अगर फ़िर भी आपको यह सब सत्य लगे तो समझिये लेखक सफल हुआ और आप ने साहित्य पढ़ने में महारत हासिल कर ली है. इस आर्टिकल के साथ साभार प्रस्तुत कार्टून मूर्धन्य कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के हैं. लेखक कृष्ण देव नारायण राय पूर्वांचल के जाने माने पत्रकार हैं व काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष हैं.