मुहम्मदाबाद से विकास राय
नवरात्र में शक्ति स्वरूपा मां भगवती के आराधना का तो महत्व है ही. इस दौरान कन्या पूजन का महत्व भी कम नहीं होता है. धर्म ग्रन्थों में कुमारी पूजा को नवरात्र का अनिवार्य अंग कहा गया है. यही नहीं, इस दरम्यान पूजी जाने वाली कन्याओं को देवी का प्रतीक बताया गया है.
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शक्ति के आराधकों के लिए कन्याएं साक्षात माता के समान होती हैं
इनकी आराधना से मां जगत जननी दुर्गा प्रसन्न होती हैं और भक्त की सारी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं. नवरात्र में माता के नौ रूपों क्रमश: शैलपुत्री ब्रह्म चारिणी, चन्द्र घंटा, कूष्मांडा, स्कन्द माता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी व सिद्ध दात्री देवी के पूजन का विधान है, लेकिन इनके साथ साथ दो से दस वर्ष की कन्याओं के विभिन्न रूपों के पूजन का भी खास महत्व है. नवरात्र में किया गया पूजा पाठ व आराधना कभी निष्फल नहीं होता. अपितु श्रद्धालुओं का उसका फल निश्चित रूप से मिलता है.
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अलग अलग नाम से जानी जाती है हर उम्र की कन्या
नवरात्र में दो से दस वर्ष की कन्याओं के पूजन का विधान है. दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहते हैं. तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति. चार वर्ष की कन्या को कल्याणी. पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी. छह वर्ष की कन्या को कालिका कहा जाता है. सात वर्ष की कन्या को चंडिका कहा जाता है. आठ वर्ष की कन्या को शांभवी, नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा तथा दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा के नाम से जाना जाता है.
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कन्याओं के हर दिन पूजन का विधान है
अयोध्या वासी महामण्डलेश्वर श्री शिवराम दास जी फलहारी बाबा के अनुसार नवरात्र में अगर उम्र के हिसाब से कन्याएं मिले तो हर दिन उनके पूजन का विधान है, अन्यथा अष्टमी के दिन कन्याओं को आसन पर बैठाकर मां भगवती के नामों से पृथक पृथक उनकी पूजा करनी चाहिए. कन्याओं के पूजन और उनकी आरती उतारने के पश्चात उनको भोजन कराते समय वस्त्र आदि भेंट कर उन्हें विदा करना चाहिए. कुमारी पूजन से अलग अलग मिलता है फल. कुमारी पूजन से दुख दरिद्र दूर होता है व शत्रु का शमन होता है, इससे धन, आयु व बल की वृद्धि होती है.
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त्रिमूर्ति की पूजा से धर्म, अर्थ व काम की सिद्धि मिलती है
इसी तरह कल्याणी की पूजन से विजय व राज सुख, चंडिका के पूजन से ऐश्वर्य व धन की प्राप्ति होती है. किसी को मोहित करने संग्राम में विजय प्राप्त करने दुख दारिद्र्य को हटाने के लिए शांभवी, कठिन कार्य को सिद्ध करने के लिए दुर्गा के रूप की पूजा की जाती है. सुभद्रा के पूजन से व्यक्ति की सारी मनोकामनाऐ पूर्ण होती हैं. रोहिणी के पूजन से व्यक्ति निरोग रहता है. नवरात्र में कन्या पूजन से नवरात्र का फल पूर्ण रूप से प्राप्त होता है. संसार में जितने भी व्रत हैं, उनमें नवरात्र के व्रत को सबसे उत्तम माना गया हैं.
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