नुकसान से बचने के लिए गेहूं भंडारण के वैज्ञानिक तरीके अपनाए किसान

सिकन्दरपुर (बलिया) से संतोष शर्मा

कृषक स्तर पर गेहूं का जितना उत्पादन होता है उसका करीब 70% भाग बेच दिया जाता है, शेष 30% को किसान अपने उपभोग, बीज व कुछ मात्रा भविष्य में विक्रय हेतु भंडारित करते हैं. भंडारण की अवधि में तापक्रम, नमी, घुन/पई, चूहे, चिड़ियों एवं सूक्ष्म जीवों से गेहू की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण कार्य है.

क्षति से बचने हेतु भंडारण के वैज्ञानिक तरीकों को अपनाना आवश्यक है. इस संबंध में कृषि रक्षा अधिकारी नवानगर श्याम बदन शर्मा ने बताया कि भंडारण के पूर्व ड्रम/ बखारी की समुचित सफ़ाई कर उसे तेज धूप में सूखा लिया जाए, जिससे कि उसके अंदर छिपे हुए घून/ पई समाप्त हो जाए. जिस कमरे में बखारी हो उसकी समुचित सफाई कर डाईक्लोरोवास रसायन की 100 मिलीलीटर मात्रा को 30 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कमरे की फर्श, छत, दीवालों ,खिड़की और दरवाजा पर छिड़काव कर 12 घंटे के लिए कमरे को बंद कर दिया जाना चाहिए ताकि अंदर छिपे हुए कीड़े मर जाएं.

इसी घोल में पुराने बोरों को भी डुबो कर सुखा लिया जाए, तत्पश्चात उनमें गेहूं का भर फर्श पर 2 फीट मोटी भूसा की तह बिछा उसके ऊपर गेहू भरे बोरों को रखना चाहिए. बोरो व दिवाल की दूरी ढाई फीट होने चाहिए ताकि गेहूं नमी से सुरक्षित रहे, जबकि ड्रम/ बखारी मे रखे गेहूं में घुन /पई के निवारण हेतु एल्यूमीनियम फास्फाइड 56% के चूर्ण का 10 ग्राम का एक पाऊच गेहूं के बीच में रखा जाना चाहिए.

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