

बैरिया (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र
363 बैरिया विधानसभा क्षेत्र के राजनीतिक परिदृश्य पर उथल-पुथल का दौर तेज हो गया है. इस विधानसभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे व 2012 के चुनाव में कांग्रेस से प्रत्याशी रहे सुभाष यादव की बसपा में वापसी की खबर बैरिया विधानसभा क्षेत्र में जंगल की आग की तरफ फैल गई है. बसपा में उनकी वापसी के खासे मायने निकाले जा रहे हैं. इतना ही नहीं श्री यादव के समर्थक जगह-जगह मिठाई बांट रहे हैं, वही एक दूसरे को बधाई देने का दौर भी जारी है.
बसपा कार्यकर्ता यहां तक कयास लगा रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी का बैरिया विधानसभा क्षेत्र से टिकट घोषित होते ही प्रदेश में बसपा के कुछ प्रत्याशी बदले जाएंगे. उस समय बैरिया में भी बदलाव हो सकता है. पूर्व विधायक सुभाष यादव के समर्थकों के खुशी का ठिकाना नहीं है. सुभाष यादव के बसपा में आ जाने से यहां के राजनीतिक परिदृश्य में एक नए समीकरण का आगाज हुआ माना जा रहा है. उधर, समाजवादी पार्टी के जिला महासचिव मनोज सिंह भी टिकट की दावेदारी में थे. टिकट न मिलने पर वह भी बगावती तेवर में हैं. 25 जनवरी को अपने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाए हैं और वहीं से मैदान में विद्रोही प्रत्याशी के तौर पर अपने को प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं.

सबसे विकट स्थिति तो यहां भारतीय जनता पार्टी की है. यहां से प्रत्याशी के दौड़ में संघर्षरत पूर्व विधायक विक्रम सिंह, मुक्तेश्वर सिंह, सुरेंद्र सिंह व जय प्रकाश नारायण सिंह टिकट की आस में लखनऊ और दिल्ली में जमे हुए हैं. यहां चर्चा में दिन में तीन बार दवा की खुराक की तरह कभी विक्रम सिंह तो कभी मुक्तेश्वर सिंह और कभी सुरेंद्र सिंह के भाजपा से टिकट मिलने की अपुष्ट चर्चा चल रही है. तीनों में कौन टिकट पा रहा है, सब के समर्थक अपने अपने पक्ष में तर्क दे रहे हैं.
वहीं सोमवार की शाम से बांसडीह विधानसभा क्षेत्र में गठबंधन के चलते भाजपा का टिकट पाने से वंचित रही केतकी सिंह को बैरिया विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा जोरों पर है. जैसा कि पहले ही बलिया लाइव के सुधी पाठकों को खबरों के माध्यम से अवगत कराया जा चुका है कि अपने अलबेले मिजाज वाले बैरिया विधान सभा की धरती पर विद्रोह की ज्वाला मुखी जागृत हो चुकी है. दिल्ली और लखनऊ में बैठे पार्टी नेतृत्व के सिद्धांतों और विचारों की धज्जियां उड़ती महसूस की जा रही है. वही पार्टी, जाति, क्षेत्रीय राजनीति और शीर्ष नेतृत्व के मकड़जाल में उलझ कर द्वाबा के राजनीतिक परिदृश्य पर हाडहोर मचा हुआ है.