गीता प्रवचन के तीसरें दिन भक्तों ने उठाया प्रवचन का लाभ

सिकन्दरपुर (बलिया). आत्मा व परमात्मा को जान लेना ही जीवन की सार्थकता है, जो व्यक्ति कर्मों में और उनके फलों में आशक्ति का सर्वथा त्याग कर संसार के आश्रय से रहित हो परमात्मा में नित्य तृप्त है. वह कर्म करता हुआ भी वस्तुतः कुछ नहीं करता. योगीजन अपानवायु को प्राणवायु में तथा प्राणवायु को अपानवायु में हवन करते हैं.

इसी भाँति नियमित आहार करने वाले प्राणायाम परायण पुरुष प्राण व अपान की गति रोककर प्राणों को प्राणों में ही हवन किया करते हैं. ये सभी साधक यज्ञों द्वारा पापों का नाश कर देने वाले और यज्ञों के ज्ञाता हैं. उक्त बातें परमधाम परिसर में आयोजित यज्ञानुष्ठान के तीसरे दिन मंगलवार को स्वामी ईश्वरदास ब्रह्मचारी जी महाराज ने व्यासपीठ से कही. उन्होंने बताया कि जिस ज्ञान को श्रीहरि ने पूर्वकाल में सूर्य से कहा था. वह कालान्तर में लुप्तप्राय हो गया था. उसे ही कृष्ण ने अर्जुन को सुनाया. प्रभु ने अपने दिव्य जन्म कर्म की बातें बताकर अर्जुन की एतद विषयक शंका को निर्मूल किया.

स्वामी जी ने इस बात का रहस्योद्घाटन किया कि कृष्ण में त्रिधा शक्तियाँ समय समय पर कार्यरत रहीं. वासुदेव जी जब अपने नवजात शिशु बालमुकुन्द को नन्दरानी के यहाँ पहुँचा देते हैं.तब सबेरा होते ही कन्हैया में परमधाम का तेज आवेशित हो जाता है. महारास के समय गोलोक की शक्ति काम करती है तथा अन्ततः बैकुण्ठ का तेज आता है. राम व कृष्ण दोनों ही परब्रह्म सच्चिदानन्द के लक्षणों से युक्त थे. स्वामी जी ने जीवन सरिता को लक्ष्य कर त्रिविध सत्ता की बात बतायी.

सरिता के इस पार जीवसत्ता परले पार ब्रह्म परमात्म सत्ता तथा मध्य में गुरुसत्ता हैं. गुरुसत्ता को सबने स्वीकार किया है, क्योंकि सद्गुरु के बिना बेड़ापार असम्भव है. सद्‌गुरु को पहचानना अत्यन्त कठिन है.जीते जी मुक्ति का उपाय करों.वक्ता ने ध्यान की विधि बताते हुए और मोहनिशा से जागृति का सन्देश देते हुए कहा कि जिसका जीवन संयमित नहीं, वह पशुतुल्य है. संयमित व्यक्ति ही दैवी तेज को देख सकने में समर्थ है.स्वामी हरिहरानन्द जी ने जप, तप, स्वाध्याय तथा ईश्वर प्रणिधानादि बिन्दुओं पर सारगर्भित शब्दावली में वक्तव्य दिया.

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE         

आश्रमवासी गोरखदासजी ने भी मानव तन को सार्थक बनाने का सुझाव दिया. सद्गुरु के शाश्वत स्वरूप का नमन वन्दन और दयामूर्ति शंकर का संगीतमय स्तवन करते हुए ब्रह्मचारी नवतेश जी ने कहा कि गीता में कर्मयोग का जो उपदेश उपलब्ध है; वह अन्यत्र एक जगह कहीं भी मिलने को नहीं.व्यस्त दिनचर्या में कर्मयोग भगवत्प्राप्ति का सर्वाधिक आसान तरीका है.

आप बीज बोने के अधिकारी हो, फल के अधिकारी नहीं. आपका पुण्य आपके पास फल रूप में जरूर आयेगा. कर्म में समुन्नत भाव भरने से उसमें निखार आता है. वैदिक यज्ञमण्डप में पूजन, हवन , आरती, स्तवन का सिलसिला दिन भर चलता रहा. अपनी सुमधुर भजन प्रस्तुति से बाल कलाकार अदिति सिंह एवं आदित्य सिंह को सराहा गया.संचालन श्री भागवत सिंह ने किया.
सिकंदर से संतोष शर्मा की रिपोर्ट

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE