बलिया। मनुष्य का शरीर पंच कोष से निर्मित होता है. कलियुग में प्राण अन्नमय कोष में निवास करता है. इन पांच कोषों से आत्मा अलग है, जिसका साक्षात्कार ही मोक्ष है. इस गुह्य तथ्य की प्राप्ति के लिए ही हमारे ऋषियों ने अनेक मार्ग का प्रतिपादन किया था. उक्त विचार आयुष डॉक्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन संविदा कर्मचारी संघ केअध्यक्ष डॉ. रामसुरेश राय ने सोमवार को भृगु मन्दिर बलिया से प्रारम्भ पंचकोषी परिक्रमा केअवसर पर व्यक्त किया.
डॉ. रामसुरेश राय ने बताया कि दीपावली की रात भृगु मन्दिर पर निवास कर दूसरे दिन सागरपाली से देवकली, शंकरपुर, छितौनी होते हुए पराशर स्थान परसिया में एक एक रात निवास करने के बाद पुनः भृगु मन्दिर पर लौटने पर यात्रा पूर्ण होती है. प्रत्येक स्थान का अपना अलग महत्व है और कालान्तर मे वहां देवता औरऋषि मुनि निवास किए हैं. उन्हीं के नाम पर उन स्थानों का नामकरण हुआ था, जो कालान्तर से अपभ्रंश होकर बदलता गया. इस पंच कोषीय यात्रा में जो भगवान की मूर्ति साथ चलती है, वह लगभग तीन सौ वर्ष से लगातार पारम्परिक ढंगे से चल रही है. इस समय पं. उमेश चौबे अपने अग्रज के साथ उस परम्परा को जारी रखे हुए हैं.
यात्रा मे पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की संख्या ज्यादा है. अपने को हिन्दू समाज का पथ प्रदर्शक कहलाने वालों की अनुपस्थिति सोचनीय है, क्योंकि जिस परम्परा की नींव सन्तों ने डाली थी उसमें उनकी उपस्थिति नगण्य रही. परम पूज्य स्वामी पशुपति बाबा महाराज भी पंचकोषी यात्रा की अक्सर चर्चा करते थे और करने की प्रेरणा देते थे. सन्त रामबालक बाबा से भी उन्होंने यात्रा के लिए कहा था.