- होने चाहिए आठ डॉक्टर, तैनाती है सिर्फ एक एमबीबीएस की
- महिलाओं के लिए यहां एकमात्र आसरा हैं होमियोपैथी चिकित्सक
बांसडीह (बलिया)। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बांसडीह दो जगहों पर चलता है. एक एमबीबीएस व कुछ संविदा के डॉक्टरों के सहारे चलने वाले इस अस्पताल पर असुविधायें ही हैं. एक्सरे व इसीजी मशीनें तो हैं, लेकिन आज तक एक भी एक्सरे नहीं हुए और तो और यहां ईसीजी मशीन तो है, लेकिन इसे करने वाले डॉक्टर नहीं है. एक्सरे मशीन के लिए बिजली ही उपलब्ध नहीं है.
तत्कालीन विधायक व पूर्व मंत्री बच्चा पाठक ने 1988 में इस सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को लाखों की लागत से अपने क्षेत्र में बनवाया था. ताकि बांसडीह व आस पास के लोगो को नजदीक में एक अच्छा अस्पताल मिल सके. मरीजो को दूर कही नहीं जाना पड़े, लेकिन यह अस्पताल चला ही नहीं. कभी कभार जब चेकिंग होती है तो सारे डॉक्टर व कर्मचारी उस दिन उपलब्ध होते हैं.
बांसडीह व अगौउर में चलने वाले अस्पताल में तो गदहों व सुअरो का रैन बसेरा है. 100 बेड वालें अस्पताल की बिल्डिंग को छोड़कर बाकी जगह घास-खर-पतवार ने जगह ले लिया है. वहां पर बनी बिल्डिंगों में से खिड़की एवं दरवाजा चोरों ने गायब कर दिया. कोई कर्मचारी यहां नहीं रहता है. कुछ दिनों से यहां 108 एम्बुलेंस के कर्मचारी रहते हैं. सामुदायिक केंद्र जाने के लिये संपर्क मार्ग तो बना, लेकिन काम सलीके से नहीं हुआ. नतीजतन संपर्क मार्ग को गिटी से पाट कर छोड़ दिया गया.
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व पीएचसी मिलाकर आठ डॉक्टरों की जगह है, लेकिन डॉक्टरों की आठ जगहों में से केवल एक डॉक्टर चिकित्सा अधीक्षक ही एमबीबीएस हैं. संविदा पर तैनात मात्र एक होमियोपैथिक महिला चिकित्सक के सहारे महिलाओ की देख रेख होती है. फार्मासिस्ट के दो पदों में एक पद खाली है.
बांसडीह तहसील मुख्यालय ब्लॉक यहां पर है. महिला मरीजो को संविदा पर तैनात होमियोपैथी डॉक्टर ही देखती हैं. वह भी केवल दस बजे से दो बजे तक. उसके बाद अपना नर्सिग होम चलाती हैं. यहां पर तैनात कई एएनएम अपना खुद का अलग नर्सिग होम चलाती हैं. महिला मरीजों की हालत ज्यादा खराब होने पर जिला चिकित्सालय पर रेफर कर दिया जाता है. इसको लेकर कई बार आंदोलन व धरना प्रदर्शन हो चूका है, लेकिन हालात जस की तस है. बांसडीह स्थित अस्पताल पर इन दुर्व्यवस्थाओं को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के स्थानीय लोगों लोगो द्वारा धरना प्रदर्शन भी किया गया. तालाबंदी हुई. मरीजों द्वारा अस्पताल परिसर में तोड़ फोड़ भी हुई, लेकिन हालात जस के तस है.