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रविशंकर पांडेय, बांसडीह,बलिया
बांसडीह,बलिया. सरकार जहां एक ओर मरीजों को सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवा उपलब्ध कराने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं बांसडीह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में कुछ चिकित्सक इस मंशा पर पानी फेरते नजर आ रहे हैं। विभाग के अधिकारी दावा करते हैं कि यहां 96 प्रकार की दवाएं हर समय उपलब्ध रहती हैं, लेकिन आरोप यह हैं कि गरीब मरीजों को बाहर की महंगी दवाएं लिखकर हजारों रुपये का बोझ डाला जा रहा है।
मरीजों और उनके परिजनों का कहना है कि डॉक्टर मुफ्त दवा देने के बजाय बाहर से दवा खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। कई मरीजों को 1,500 से लेकर 5,000 रुपये तक की पर्चियां थमा दी गईं। इतना ही नहीं, कुछ डॉक्टर खुलेआम विशेष मेडिकल स्टोर का नाम तक सुझा देते हैं, जिससे कमीशनखोरी की आशंका और गहरी हो जाती है।
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मरीज जवाहिर राजभर निवासी राजपुर,नगर पंचायत बांसडीह निवासी दीपू शर्मा ने बताया कि “डॉक्टर साहब ने जो पर्ची लिखी, उसमें सारी दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ीं। सरकारी अस्पताल में दवा रहते हुए भी हमें क्रमशः 4500, और 500 रुपये खर्च करने पड़े। आखिर गरीब आदमी इलाज कहां कराए?”
पुरानी शिकायतें, कार्रवाई नहीं
यह कोई पहली बार नहीं है। कुछ दिन पहले कस्बे के ही एक मरीज ने सीएचसी अधीक्षक को लिखित शिकायत दी थी और पर्ची भी सौंपी थी। अधीक्षक ने जांच का आश्वासन तो दिया, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई सामने नहीं आई। इससे साफ है कि शिकायतें फाइलों में दबा दी जाती हैं और मरीजों की मजबूरी का फायदा उठाकर बाहर की दवाओं का खेल जारी रहता है।
आर्थिक व मानसिक शोषण
ग्रामीणों का कहना है कि नए-नए तैनात डॉक्टरों ने कमीशनखोरी को धंधा बना लिया है। गरीब मरीजों को यह कहकर बाहर भेजा जाता है कि “अस्पताल में दवा नहीं है” या “यह दवा यहां उपलब्ध नहीं होती।” मजबूरन मरीज कर्ज लेकर या गहना बेचकर दवा खरीदने पर मजबूर हो जाते हैं। इस शोषण से न सिर्फ उनकी जेब खाली होती है बल्कि मानसिक तनाव भी बढ़ता है।
अधीक्षक का बयान
इस मामले पर सीएचसी अधीक्षक डॉ. नितिन कुमार सिंह ने कहा—“प्रकरण संज्ञान में है। पर्ची की जांच की जा रही है। अस्पताल में सभी आवश्यक दवाएं उपलब्ध हैं। यदि किसी चिकित्सक ने नियमों का उल्लंघन कर बाहर की दवा लिखी है तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।”
स्थानीयों का गुस्सा और मांग
मामले ने तूल पकड़ लिया है। अब ग्रामीण और मरीज संगठन खुलकर विरोध में उतर आए हैं। लोगों की मांग है कि—दोषी डॉक्टरों को तुरंत हटाया जाए। अस्पताल में बाहर की दवा लिखने पर पूर्ण प्रतिबंध लगे। मरीजों को अस्पताल से ही दवा और जांच की सुविधा सुनिश्चित की जाए। स्थानीय निवासी एवं भाजपा नेता प्रतुल कुमार ओझा ने कहा कि “अगर सरकार की दवाएं अस्पताल में हैं, तो फिर हमें बाहर क्यों भेजा जा रहा है? गरीब मरीजों का शोषण करने वाले डॉक्टरों पर तुरंत सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।”
सरकारी योजनाओं पर संकट
प्रबुद्ध लोगों का मानना है कि यदि ऐसे मामले पर अंकुश नहीं लगाया गया तो सरकार की मुफ्त दवा योजना का पूरा उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा। योजनाएं गरीबों के लिए बनती हैं, लेकिन भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण उसका फायदा बीच में ही रुक जाता है। इस पर रोक लगनी ही चाहिए.
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