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आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस के बढ़ते प्रभाव ने आज हमारी ज़िंदगी के लगभग हर हिस्से को प्रभावित किया है—काम से लेकर शिक्षा तक, व्यापार से लेकर घरेलू जीवन तक। इस जटिल और तेज़ी से बदलती दुनिया को सरल बनाकर प्रस्तुत करने वाली हिंदी पुस्तकों की संख्या बहुत कम है।
ऐसे परिदृश्य में सुरेश कुमार की पुस्तक “आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और हमलोग” एक महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय हस्तक्षेप के रूप में उभरती है। पुस्तक की भूमिका में यह धारणा कि “तकनीक अब दूर की चीज़ नहीं रही; वह हमारे जेब, आवाज़ और फैसलों तक में पहुँच चुकी है,” अपने आप में उस नए युग का परिचय है जिसमें तकनीक और मनुष्य एक-दूसरे के सतत साझेदार बन चुके हैं।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह AI को जटिल तकनीकी ढांचे से बाहर निकालकर आम जीवन की धरातलीय परिस्थितियों में प्रस्तुत करती है। पाठक को यह समझने में देर नहीं लगती कि AI केवल प्रयोगशालाओं या वैज्ञानिकों की संपत्ति नहीं, बल्कि किसान, दुकानदार, छात्र, महिला उद्यमी और सामान्य गृहस्थी की दैनिक जरूरतों का व्यवहारिक साथी बन चुका है।
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उदाहरण के तौर पर, किसान द्वारा मौसम और मिट्टी का विश्लेषण करने वाले ऐप्स का उपयोग, दुकानदार के WhatsApp चैटबॉट से ग्राहक सेवा को सरल बनाना, या बच्चों द्वारा ChatGPT की सहायता से कठिन विषयों को सहज रूप से समझना—ये सभी उदाहरण बताते हैं कि AI हमारे जीवन में किस प्राकृतिक रूप से समाहित हो चुका है।
भारतीय संदर्भ में AI को समझाने का प्रयास इस पुस्तक को विशेष महत्व प्रदान करता है। लेखक ने राष्ट्रीय स्तर की पहलों—जैसे IndiaAI Mission, Bhashini Project, ONDC, और Digital India Bhasha Daan—को बेहद सरल भाषा में समझाते हुए यह स्पष्ट किया है कि तकनीक तभी सशक्तिकरण बनती है, जब वह भाषा और समझ की बाधाओं को पार करके आम नागरिक तक पहुँच सके। यही कारण है कि पुस्तक AI को केवल नवाचार नहीं, बल्कि डिजिटल लोकतंत्र का हिस्सा मानती है और भाषाई सशक्तिकरण को उसकी आधारशिला घोषित करती है।
पुस्तक की संरचना स्पष्ट, व्यावहारिक और पाठक-केंद्रित है। प्रत्येक अध्याय पाठकों के अलग-अलग समूहों—जैसे शिक्षक, विद्यार्थी, छोटे उद्यमी, स्टार्टअप संचालक, गृहिणियाँ, ग्रामीण उपयोगकर्ता—को ध्यान में रखकर लिखा गया है। AI टूल्स, डिजिटल क्रिएटिविटी, शिक्षा, संचार, स्वास्थ्य, बैंकिंग और ई-कॉमर्स जैसे क्षेत्रों में AI की भूमिका को विश्लेषणात्मक उदाहरणों के साथ समझाया गया है। विशेष रूप से फेक फोटो, डीपफेक वीडियो, नकली आवाज़ और चैटबॉट धोखाधड़ी पर आधारित अध्याय आज की डिजिटल चुनौतियों के संदर्भ में अत्यंत उपयोगी और जागरूकता बढ़ाने वाला है।
लेखन शैली भी पुस्तक को विशिष्ट बनाती है। यह न तो तकनीकी जटिलता का बोझ देती है और न ही किसी प्रकार का अनावश्यक चमत्कारवाद गढ़ती है। भाषा सहज है, परंतु सरलीकरण के बावजूद गहराई बनाए रखती है। लेखक पाठक से संवाद करते हैं—कभी प्रश्न पूछकर, कभी सुझाव देकर, और कई बार प्रेरित करते हुए कि “इसे स्वयं आज़माइए।” इस शैली के कारण पुस्तक ‘सूचना’ से आगे बढ़कर ‘अनुभव’ में बदल जाती है और पाठक को सक्रिय भागीदार बना देती है।
“आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और हमलोग” उन चुनिंदा हिंदी पुस्तकों में से है जो AI को मानवता, समाज और व्यवहार से जोड़ती है। यह न केवल भविष्य की तकनीक को समझाती है, बल्कि वर्तमान की जरूरतों, चुनौतियों और संभावनाओं का भी संतुलित ढंग से विश्लेषण करती है। यह दिखाती है कि AI दुनिया को बदल रहा है, लेकिन वह बदलाव तभी सार्थक होगा जब आम नागरिक उसे समझें, अपनाएँ और विवेकपूर्ण ढंग से उपयोग करें।
समग्र रूप से यह पुस्तक तकनीक और सामान्य नागरिक के बीच एक पुल की तरह काम करती है। यह दूरी को कम करती है, जटिलता को सरल बनाती है और पाठक को भय के स्थान पर आत्मविश्वास प्रदान करती है। तक्षशिला प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह कृति हर उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है जो AI के बढ़ते प्रभाव को समझना चाहता है और डिजिटल भविष्य के लिए स्वयं को तैयार करना चाहता है।
पुस्तक: आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) और हमलोग
लेखक: डॉ. सुरेश कुमार | प्रकाशक: तक्षशिला प्रकाशन | हार्डकवर, पेज – 256 | मूल्य : रु.650/-
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