सुखपुरा(बलिया)। भरखरा के जटहवा बाबा के स्थान पर चल रहे अभिषेत्मक यज्ञ मे ब्यास पीठ से बाल संत शक्ति पुत्र लोगो को कथा रस पान कराते हुये बोले कि यज्ञ अपने प्रिय वस्तुओं के प्रति मोह का और ईश्वर के प्रति समर्पण के भाव का द्योतक है. यज्ञ में हम अपने आवश्यक और प्रिय वस्तुओ जैसे तिल, गुड़, अनाज ,नारियल, मेवा ,वस्त्र आदि वस्तुओं को ईश्वर को समर्पित करते हैं, और ईश्वर उनकी रक्षा करता है.
जिससे संसार मे उन वस्तुओं की कमी नहीं होती है, और समर्पण कर्ता के मान सम्मान और यश में वृद्धि होती है. ईश्वर को समर्पण के बाद उसकी रक्षा का दायित्व ईश्वर का होता है, जैसे यदि कोई सर्प किसी के घर में निकलता है तो लोग उसे मार डालते हैं. लेकिन वही सर्प यदि शंकर की प्रतिमा से लिपट जाता है या मंदिर में चला जाता है और अपना जीवन ईश्वर को समर्पित कर देता है तो लोग उसको सम्मानित करने लगते हैं. यहां सिर्फ ईश्वर के प्रति समर्पण से उसके प्राण की रक्षा होती है. जबकि वह एक रेंगने वाला जीव है. यदि समाज का सबसे महत्वपूर्ण और बुद्धिजीवी प्राणी मानव अपने आप को ईश्वर के प्रति समर्पित कर दे तो निश्चित ही उसके मान सम्मान यश पद प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी. इसमे कहीं कोई शंका नहीं होनी चाहिए. यह अभिकेषात्मक रुद्र महायज्ञ है जो 12 ज्योतिर्लिंगों के आवाहन द्वारा होता है. मनुष्य की राशि भी 12 होती है. इससे सभी राशियों के मनुष्य को पूर्ण फल की प्राप्ति होता है. इस 11दिवसीय यज्ञ की पुर्णाहुती 29 ता को है. जिसमे एक विशाल भंण्डारे का आयोजन है.