(मोहन सिंह, वरिष्ठ स्तंभकार)
कोरोना काल में गांव के लोगन के बढ़ल परेशानी. कवनों विपति के समय लोगन के सामने कवना तरह के मुसीबत आवेला ओकर बहुत जीवंत वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी एगो कवित में कइले बानी,,,,.. खेती न किसानी को भिखारी के ना भीख भली, वणिक को वणिज न चाकर के चाकरी.जीविका विहीन लोग सीधमान सोचवश कहे एक दूसरों कहां जाइ,का करी.. जी हां,लगातर ई दूसरका साल बा, जब लोगन के समझ नइखे आवत कि अब का होई. खासकर अइसन समय में जब देश में कोरोना के दुगो लहर में पता ना कतना जिंदगी बर्बाद हो गईल.
अब तीसरका लहर के आवें के भविष्यवाणी हो रहल बा. गांव में कवनों अइसन घर नइखे, जहॉ केहु कवनों ना कवनों अपना खास के ना खोवले होखें. लेकिन जइसन कुँवर नारायण के एगो कविता में बतावल गईल बा, आ जवना के ई आशय बा कि आदमी के साहस से ताकतवर कवनों आफत, विपत्ति ना हो सकें. एह उम्मीद के सहारे जीवन के नाव आगे खेंवात बा. ई किसानन के जिंदगी में भी तबाही के दुसरका साल चलत बा.
पिछलका साल के कोरोना के आफत भी कवनों कोर कसर ना छोड़ले रहें. सब्जी के खेती,गर्मी वाला मक्का के किसानन के पैदावार के काफी नुकसान भईल रहें. एह साल गनीमत अतने बा कि किसानन के अनाज खलिहान से घर आ गईल बा. असमय बरसात से किसान के पैदावार बच गईल बा.बाकी किसानन के पैदावार के सरकारी खरीद में एह साल एतना तकनीकी दिक्कत खड़ा हो गइल बा कि जरूरतमंद किसान उबिया के आपन पैदावार कम दाम पर साहूकारन के बेंचे के मजबूर बाड़न.
सब्जी के खेती करें वाला किसानन के हाल ई बा गांव में लौकी,नेनुआ,करैला आ परवल तोड़ाई के मजदूरी ऑइल मुश्किल हो गइल बा.यहां याद कइल जरूरी बा कि उत्तर प्रदेश आ बिहार में गंगा,घाघरा के बीच के दोआब में बड़ा पैमान पर जायद के खेती होला.कोरोना के पिछला दौर में जवन मजदूर शहर से गांव ऑइल रहें उ अधिकतर लोग दुबारा शहर गईला के अपेक्षा खेती के काम में हाथ आजमावे के कोशिश कईल.
एह लोगन के वजह से खेत के मालगुजारी बढ़ गईल.ई लोग एह उम्मीद में खेती कइल कि शहर में दर दर के ठोकर खइला से बेहतर बा कि आपन खेती बारी कइल जाय.बाकी ओह उम्मीद पर एह साल भी फेर पानी फिर गईल. जायद के खेती करे वाला किसानन के लागत निकालल मुश्किल हो गईल बा.केरल सरकार की तरह सब्जी के पैदावार के न्यूनतम समर्थन मूल्य देबे के कवनों राज्य सरकार घोषणा नइखे कइले.अभी तक रबी के फसल के खरीद के ही कवनों समुचित व्यवस्था नइखे हो पावत.
आलू,प्याज के किसान जरूर एह साल फायदा में बाड़े.बाजार में एह समय सबसे महंगा सब्जी आलू आ प्याज बिकत बा.लग्न, विवाह में सब्जी के खपत कम हो गइल बा,काहे कि आयोजन के आकार एह समय छोटा होत बा.आवाजाही पर पाबन्दी,होटल ढाबा,रेस्तरां के बंदी की वजह से भी लागत दाम किसानन के नइखे मिलत.
विवाह के अलावा गांव में आजकल बड़ा आयोजन के फैशन हो गइल बा,छोट बच्चन के मुड़न संस्कार के. गावँ में आजकल खूब बाजा गाजा संग बड़ा पैमाना पर ई आयोजन के सिलसिला चल पड़ल बा. बाकी एह कोरोना काल में जब से गंगा जी मे अधमरल आदमी के लाश उतरॉईल दिखाइल हा, अब लोग गंगा जी में स्नान करें से परहेज करें लागल बा. मुंडन के नाम पर खाली पंडित जी हजाम, लड़का आ ओकर माई, घरे से नहा के किनारे मुंडन के रस्म पूरा करावत बा.शाम के बड़ा भोज के आयोजन होत बा, जवना में शादी विवाह के तरह कोरोना प्रोटोकॉल के माने के जरूरत लोग महसूस नइखे करत.
पौराणिक कथा में एह बात के जिक्र मिलेला कि राजा भगीरथ के प्रयास से उनका पुरखन के तारे खातिर गंगा जी के अवतरण पृथ्वी पर भईल.सवाल ई बा कि का ई अइसन समय आ गईल बा कि पतित पावनी, मोक्ष दायनी गंगा जी जल में अब उ पवित्रता नइखे रह गईल आ लोगन के आस्था में कवनों कमी आ गईल बा कि लोग आचमन करें अथवा मुंडन संस्कार के बाद स्नान के हिम्मत नइखे जुटा पावत. ई भी ओह देश में जहां नदी के किनारे पूरी सभ्यता विकसित भइला के दावा कइल जाला.
सिंधु सभ्यता के विकास भी जवना इलाका में भइल बा,आ जवन स्थानन के नामकरण भइल बा ओकर एगो अर्थ बा लाशों का टीला.अभी गनीमत बा कि कोरोना काल में भी गंगा जी के बहाव में लाशन के ढ़ेर नइखे मिलत. बाकी एह परिस्थिति में महामारी के भयावहता त प्रकट होते बा.ओह देश में जहां गर्भाधान से मृत्यु तक के संस्कार के विधान खेती किसानी आ गंगा जल के शुद्धता से जुड़ल बा.,,,,,,, मोहन सिंह अपना गांव दोकटी से..
(लेखक मोहन सिंह वरिष्ठ स्तंभकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)