देश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच शनिवार को डीआरडीओ की कोरोना की 2-डीजी दवा काफी सुर्खियों में रही, सरकार ने इसे आपात इस्तेमाल की मंजूरी दे दी है. क्लिनिकल परीक्षण में सामने आया है यह दवा अस्पताल में भर्ती मरीजों के तेजी से ठीक होने में मदद करती है, अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता कम करती है. इस दवा को बनाने में डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अनिल मिश्र ने अहम भूमिका निभाई है. डॉ. अनिल मिश्र के मुताबिक ये दवा बच्चों को भी दी जा सकती है और कोरोना भी ठीक होगा. आइए जानते हैं आखिर डॉ. अनिल मिश्र हैं कौन जिन्होंने कोरोना मरीजों के लिए इस तरह की गेमचेंजर दवा बनाई है.
डॉ. अनिल कुमार मिश्र बलिया के सिकंदरपुर क्षेत्र के ग्राम मिश्रचक के निवासी हैं. सिकंदरपुर से महज 2 किलोमीटर दूरी पर स्थित छोटे से गांव मिश्रचक के अनिल कुमार मिश्रा ने कक्षा एक से आठवीं तक की पढ़ाई जूनियर हाई स्कूल सिकंदरपुर में की. इसके बाद उन्होंने हाई स्कूल की पढ़ाई संदवापुर इंटर कॉलेज से की. इसके बाद उन्होंने गोरखपुर विश्वविद्यालय से 1984 में एमएससी और बीएचयू वाराणसी से 1988 में रसायन विज्ञान विभाग से पीएचडी किया.
इसके बाद वे फ्रांस के बर्गोग्ने विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रोजर गिलार्ड के साथ तीन साल के लिए पोस्टडॉक्टोरल फेलो थे. इसके बाद वे प्रोफेसर सी एफ मेयर्स के साथ कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में भी पोस्टडॉक्टोरल फेलो रहे. वे 1994- 1997 तक INSERM, नांतेस, फ्रांस में प्रोफेसर चताल के साथ अनुसंधान वैज्ञानिक रहे.
डॉ. अनिल मिश्र 1997 में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में डीआरडीओ के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज में शामिल हुए. वह 2002-2003 तक जर्मनी के मैक्स-प्लैंक इंस्टीट्यूट में विजिटिंग प्रोफेसर और INMAS के प्रमुख रहे. वर्तमान में वह डीआरडीओ के साइक्लोट्रॉन और रेडियो फार्मास्यूटिकल साइंसेज डिवीजन में काम करते हैं. अनिल रेडियोमिस्ट्री, न्यूक्लियर केमिस्ट्री और ऑर्गेनिक केमिस्ट्री में रिसर्च करते हैं.
पानी में घोलकर पीना होगी दवा
2-डीजी दवा पाउडर के रूप में पैकेट में उपलब्ध होगी. इसे पानी में घोलकर पीना होता है. डीआरडीओ के अनुसार 2-डीजी दवा वायरस से संक्रमित मरीज की कोशिका में जमा हो जाती है और उसको और बढ़ने से रोकती है. संक्रमित कोशिका के साथ मिलकर यह एक तरह से सुरक्षा दीवार बना देती है. इससे वायरस उस कोशिका के साथ ही अन्य हिस्से में भी फैल नहीं पाएगा.
वायरस का खात्मा ऐसे करेगी 2-डीजी दवा
यह दवा लेने के बाद मरीज की अतिरिक्त ऑक्सीजन पर निर्भरता कम होगी. विशेषज्ञों के अनुसार यदि वायरस को शरीर में ग्लूकोज न मिले तो उसकी वृद्धि रुक जाएगी. डॉ.अनिल मिश्रा ने मिश्रा ने एक न्यूज चैनल को बताया कि साल 2020 में ही कोरोना की इस दवा को बनाने का काम शुरू किया गया था. उन्होंने कहा कि साल 2020 में जब कोरोना का प्रकोप जारी था, उसी दौरान डीआरडीओ के एक वैज्ञानिक ने हैदराबाद में इस दवा की टेस्टिंग की थी.
(सिकंदरपुर से संतोष शर्मा की रिपोर्ट)