तो, विफलताओं पर तुष्ट हूं अपनी/ और यह विफल जीवन/ शत–शत धन्य होगा/ यदि समानधर्मा प्रिय तरुणों का/ कण्टकाकीर्ण मार्ग/ यह कुछ सुगम बन जावे ! यह पंक्तियां विफलता – शोध की मंजिलें शीर्षक कविता से उद्धृत हैं. उक्त कविता की रचना 9 अगस्त 1975 को चण्डीगढ़-कारावास में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने की थी. इसमें कोई संशय नहीं कि इस युग पुरुष ने शोध और प्रयोग में ही अपना जीवन गुजार दिया. आज उनकी जयंती है. आइए जानते हैं उन्हीं के शब्दों में उनके गांव के तरुणों का कण्टकाकीर्ण मार्ग किस हद तक सुगम हुआ है. प्रस्तुत है जेपी के गांव से लवकुश सिंह की स्पेशल रिपोर्ट
लोकनायक जयप्रकाश नारायण के गांव जयप्रकाशनगर (कोड़हरा नौबरार) एक ऐसा गांव है, जहां की धरती को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर अपना तीर्थ मान चुके थे. जानकार बताते हैं कि जब जेपी आखरी बार अपने गांव आए थे, तभी उन्होंने इस गांव का जिम्मा पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के कंधों पर डाल दिए थे. दशहरे के दिन ही 11 अक्टूबर को जेपी की जयंती है. यह अवसर शायद ही कभी आया हो, जब जेपी जयंती और विजय दशमी सेम-सेम डे हो. इस बार दशहरे की धूम के बीच जेपी भी हर जगह नदारद हैं. यूपी या बिहार सीमा में कहीं भी जयंती मनाने की कोई तैयारी नहीं दिख रही है. इन सब से अलग हम विकास को आधार मान उसी महापुरूष के गांव जयप्रकाशनगर की एक पड़ताल करें, तो हमें मिलता है कि यहां सभी मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध जरूर हैं, किंतु बेहतर हाल में नहीं हैं. यही सुविधाएं यदि पूरी तरह जीवित हाल में हो जांए, तो यह गांव जिले में एक अलग स्थान स्थापित कर सकता है.
शिक्षा का हाल
यहां छात्र-छात्राओं के पढ़ने के लिए दो अलग-अलग कॉलेज हैं. प्रभावती देवी स्मारक राजकीय बलिका इंटर कालेज व जेपी इंटर कॉलेज. दोनों विद्यालयों में शिक्षक-शिक्षिकाओं का घोर अभाव है. राजकीय बालिका इंटर कॉलेज में लगभग 750 छात्राओं पर मात्र तीन शिक्षिकाओं की तैनाती है, वहीं जेपी इंटर कॉलेज में चार शिक्षकों पर 450 छात्र हैं. दोनों में शिक्षक शिक्षिकाओं की तैनाती की मांग लंबे समय से चल रही है, किंतु संबंधित विभाग को इसकी कोई चिंता नहीं है. यहां दो पूर्व माध्यमिक विद्यालय, और 12 प्राथमिक विद्यालय भी है. इसमें टोला काशीराय को छोड़कर बाद बाकी सभी में तैनात शिक्षकों की लापरवाही बेहिसाब है. यदि इन विद्यालयों में शिक्षा मित्रों की तैनाती नहीं होती या शिक्षा मित्र इन विद्यालयों में न जांए तो यहां अधिकांश विद्यालय हर दिन बंद ही नजर आएंगे.
पीने योग्य नहीं है टंकी का पानी
इसी पंचायत के दलजीत टोला में एक पानी टंकी भी है. इससे संपूर्ण पंचायत में पानी का सप्लाई दिया जाता है, किंतु किसी भी घर के लोग इसका पानी पीने में यूज नहीं करते. वजह कि इस टंकी के पानी को साफ करने के लिए आज तक डोजर मशीन नहीं लगाया है. इसके पानी को लोग सिर्फ नहाने और अन्य कार्यों में यूज करते हैं.
गांव की सड़कें, नाली और यातायात के साधन
इस पंचायत में गांव के अंदर की सड़कों का हाल बहुत ही बुरा है. पीच हो या खड़ंजा सब जगह-जगह उखड़ गई है. किसी भी गांव में नाली का निर्माण भी अभी तक नहीं कराया गया है. लिहाजा हर गांव में पानी निकास की समस्या भी काफी जटिल है. यातायात के साधनों में यहां प्राइवेट जीप और बसें जरूर चलती हैं, किंतु सरकार की ओर से यहां जेपी के नाम पर कोई सरकारी बस, लोहिया बस आदि आज तक नहीं चलायी गई. जबकि गांव के लोग यहां से लोहिया बस चलाने की मांग लंबे समय से करते रहे हैं. हां, बिहार की ओर से इस गांव में एक सरकारी बस जरूर दी गई है, जो प्रतिदिन सिताबदियारा से पटना तक सफर करती है.
अटल ने आदर्श, यूनेस्को ने हेरिटेज विलेज का दिया था नाम
ग्राम पंचायत कोड़हरा नौबरार (जयप्रकाशनगर) को वर्ष 2002-03 में जेपी जयंती समारोह के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने आर्दश ग्राम, वहीं यूनेस्कों ने इसे हेरिटेज विलेज घोषित कर इसके समुचित विकास का खाका तैयार किया था. यह बात अलग है कि उन वादों के मुताबिक इस पंचायत की तस्वीर आज तक नहीं संवर सकी. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के निधन के बाद तो शीर्ष नेताओं ने इस गांव से अपना नाता ही तोड़ लिया. आज चंद्रशेखर के बदौलत ही इस पंचायत के जयप्रकाशनगर में पांच हजार पुस्तकों का संग्रह वाला पुस्तकालय, जयप्रकाश नारायण स्मारक प्रतिष्ठान,जेपी नारायण ग्रामीण प्रौद्योगिकी केंद्र, विद्युत सब स्टेशन, पुलिस चौकी, सीएचसी आदि सब मौजूद हैं.