जनसंख्या वृद्धि को मानव संसाधन के रूप में बदलना होगा, वरना भुगतना पड़ेगा गंभीर परिणाम: डा गणेश

11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस पर विशेष

बलिया। विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दुबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य पर्यावरणविद् डा गणेश कुमार पाठक ने बताया कि वैसे तो जनसंख्या वृद्धि एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, किन्तु एक सीमा के बाद जनसंख्या संसाधन न रहकर समस्या बन जाती है. जनसंख्या वृद्धि के कारण उपलब्ध संसाधनों पर दबाव बढ़ने लगता है, जिससे अनेक तरह की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक समस्याएँ जन्म लेने लगती हैं. जनसंख्या में निरन्तर वृद्धि से भूमि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जाता है, जिससे प्रति व्यक्ति साधन सीमित होते जाते हैं.

लोगों का जीवन स्तर प्रभावित होने लगता है. आवासीय परिक्षेत्र एवं सम्पर्क के बढ़ने से कृषि भूमि निरन्तर कम होती जा रही है, जिससे कुल उत्पादन प्रभावित होने लगता है.
जनसंख्या वृद्धि ने मानव जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित किया है. जिसमें भोजन, आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, पर्यावरण, लैंगिक असमानता, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं सुरक्षा उल्लेखनीय है. वहीं दूसरी तरफ जनसंख्या वृद्धि ने मानव जीवन में असंतुलन की
स्थिति भी उत्पन्न किया है. जिससे मानव का सामाजिक एवं सांस्कृतिक परिवेश पूर्णरूपेण प्रभावित हुआ है.
जनसंख्या वृद्धि के सकारात्मक प्रभाव की अपेक्षा नकारात्मक प्रभाव विशेष घातक सिद्ध हो रहा है. जनसंख्या वृद्धि का मानव संसाधन के रूप में समायोजन एवं उपयोग न होने से समाज में अनेक तरह की बुराईयों का जन्म होता है एवं मानव को अभाव की जिन्दगी जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है. जनसंख्या वृद्धि के आर्थिक प्रभाव के अन्तर्गत भोजन एवं आवास की कमी होने लगती है तथा बेरोजगारी एवं निर्धनता में वृद्धि होने लगती है. आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मानव अनेक तरह के अनैतिक एवं गैरकानूनी कार्यों को करने के लिए मजबूर है जाता है. जिससे समाज में अनेक बुराइयां जन्म लेने लगती है. आर्थिक अपराधों में वृद्धि होने लगती है और उत्पादन प्रक्रिया भी प्रभावित होती है. आर्थिक असमानताओं का जन्म होता है तथा अमीर एवं गरीब के मध्य दूरी बढ़कर असमानता का जन्म होता है.
जनसंख्या वृद्धि का नकारात्मक प्रभाव सामाजिक स्वरूप पर भी स्पष्ट रूप से पड़ता है. जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव सामाजिक संगठन, सामाजिक संरचना, लिंगानुपात में परिवर्तन, अपराधिक घटनाओं में वृद्धि आदि के रूप में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है. समाज में अनाचार, दुराचार, व्यभिचार, चोरी , डकैती, छिनैती आदि अपराधिक घटनाओं में वृद्धि जनसंख्या वृद्धि का ही परिणाम है. अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति मानव अपनी नैतिकता को भी ताक पर रख दे रहा है और चारित्रिक रूप से इतना नीचे गिरता जा रहा है कि वह कुछ भी समझने को तैयार नहीं हो पाता है.
जनसंख्या वृद्धि का सबसे घातक दुष्प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है. अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु मानव प्राकृतिक संसाधनों का इतना दोहन एवं शोषण किया कि ये संसाधन सदैव के लिए समाप्त होकर हमारी अगली पीढ़ी के जीवन के लिए भी संकट उत्पन्न कर रहे हैं. प्राकृतिक तत्वों के अतिशय दोहन एवं शोषण के कारण पर्यारवणीय एवं पारिस्थितिकीय असंतुलन में तेजी से वृद्धि होती जा रही है. जिससे अनेक तरह की प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि होती जा रही है और मानव का संकट बढ़ता जा रहा है.
यदि बलिया के संदर्भ में जनसंख्या वृद्धि को देखा जाय तो बलिया जनपद में प्रारंभिक दो दशकों को छोड़कर निरन्तर जनसंख्या में वृद्धि ही हुई है. बलिया जनपद में वर्ष 1901ई० में जनसंख्या 989420 थी जो 1911 में घटकर 848371 हो गयी. इस तरह इस दशक की जनसंख्या में 141049 की कमी हुई, जो – 14.26 प्रतिशत रही. 1911 – 1921 के दशक में जनसंख्या 833510 थी. इस तरह इस दशक में 14861 की कमी आई जो – 1.75 प्रतिशत रही. इसके बाद जनपद की जनसंख्या में क्रमशः वृद्धि हुई है और 1921- 31, 1931- 41, 1941- 51, 1951- 61, 1961- 71, 1971- 81, 1981- 91, 1991- 2001 एवं 2001- 2011 के दशकों में जनसंख्या क्रमशः 915855, 1057485, 1190416, 1355863, 1588935, 1849708, 2262273, 2761620 एवं 3223642 रही. इस तरह इन दशकों में जनसंख्या में क्रमशः 82345, 141630, 133431, 144947, 253072, 260773, 412565, 499347 एवं 462022 की वृद्धि हुई जो क्रमशः 9.88, 15.96, 12.61, 12.17, 18.94, 16.41, 22.33, 22.10 एवं 16.77 प्रतिशत रही. इस प्रकार स्पष्ट है कि बलिया जनपद में भी जनसंख्या वृद्धि उत्तर- प्रदेश एवं अपने देश की वृद्धि के अनुरूप ही होती रही.
जनपद बलिया में हो रही जनसंख्या वृद्धि का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित हो रहा है. संसाधन विहीन इस जनपद में कृषि ही अर्थव्यवस्था का मूल आधाय है, जिस पर अधिकांश जनसंख्या निर्भर है. किन्तु जनसंख्या वृद्धि से हो रहे परिवार वृद्धि एवं सामाजिक विघटन से हो रहे परिवार वृद्धि के कारण उपजाऊ कृषि भूमि आवासीय भूमि में बदलती जा रही है, जिससे भविष्य के लिए खाद्यान्न समस्या उत्पन्न हो सकती है. जनसंख्या वृद्धि के कारण ही बेरोजगार युवक अपनी आवश्कताओं की पूर्ति हेतु अनैतिक कार्यों की तरफ अग्रसर हो रहे हैं. जिससे समाज में अनेक बुराइयां जन्म लेने लगी हैं. चोरी, छिनैती, डकैती जैसे आर्थिक अपराधों में वृद्धि हो रही है. लोग रोजगार के तलाश में नगरों की तरफ पलायन कर रहे हैं और नारकीय जीवन जीने कै मजबूर हो रहे हैं तथा अनेक दुष्चक्र में फँसते जा रहे हैं और अंततः आत्महत्या तक करने को भी मजबूर हो जा रहे हैं और उनका परिवार भी बर्बाद हो जा रहा है.
बलिया जनपद में नगरीय जनसंख्या में भी अतिशय वृद्धि हुई है. जिसके चलते न केवल बलिया नगर में, बल्कि रसड़ा, बाँसडीह, रेवती, सिकन्दरपुर, बेल्थरारोड , मनियर , चितबड़ागांव एवं बैरिया जैसे छोटे नगरों में भी जनसंख्या वृद्धि का स्पष्ट प्रभाव न केवल आवासों की कमी, बल्कि विद्युत आपूर्ति की कमी, जल आपूर्ति की कमी एवं पर्यावरण प्रदूषण जैसी गम्भीर समस्याओं के साथ ही साथ सबसे अधिक ट्रैफिक जाम की समस्या से ग्रसित हैं, जिनका कोई समाधान होते नहीं दिखाई दे रहा है.
यदि जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं का समाधान ढ़ूढ़ना है तो सबसे पहले जनवृद्धि को मानव संसाधन के रूपमें बदलना होगा. उन्हें किसी किसी उत्पादक कार्यों में लगाना होगा, बेरोजगारी को दूर भगाना होगा और बेरोजगारी हम सबको नौकरी देकर दूर नहीं कर सकते हैं, बल्कि इसके लिए स्थानीय संसाधनों पर आधारित लघु एवं कुटीर उद्योग की स्थापना कर क्षमता एवं गुण के आधार पर बेरोजगार युलकों को उसमें रोजगार देकर उन्हें प्रोत्साहित करना होगा. बेरोजगार युवकों को स्वयं के रोजगार उपलब्ध कराने के लिए भी संसाधन एवं ऋण उपलब्ध कराने होंगे. अन्यथा जनसंख्या वृद्धि का यह दानव दिन प्रति दिन हमें निगलता जायेगा एवं उससे निजात पाना नामुमकिन हो जायेगा.

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