अभी भी बतकुचन का ठिकाना है घुनसार
लवकुश सिंह
दनिया के लोग 4जी के इस युग में चाहे जितना भी तेज दौड़ लगा लें, किंतु उन्हें गांव की कुछ परंपराओं का उचित विकल्प आज भी नहीं मिल सका है. गांव की उसी परंपरा में से एक है घुनसारी. जी हां, मैं उसी घुनसारी की बात कर रहा हूं, जहां आज भी गांव की महिलाएं, भूंजा, सतू के लिए आदि के लिए अनाज आदि को भुंजवाने (भुनवाने) के लिए पहुंचती हैं. यह देखने में भले ही छोटा स्थान है, किंतु घर के अंदर की बातों के मंथन का बड़ा केंद्र है. अनाज लेकर यहां पहुंची महिलाओं का अनाज भुंजवाने के लिए अलग-अलग नंबर लगता है. इसे गांव की भाषा में पारी (बारी) कहते हैं. मतलब जिसकी जब पारी यानि बारी आती है, तभी उसका अनाज घुनसार में भूना जाता है, किंतु घुनसार पर जुटी महिलाओं की आवाज को यदि सुनेंगे आप, तो भी दंग रह जाएंगे. वजह की विभिन्न गांवों से पहुंची महिलाएं यहां सिर्फ अपना आनाज ही नहीं भुनवाती, बल्कि गांव-घर की उन छिपी खबरों से भी, मौजूद महिलाओं को अवगत कराती हैं.
इस बतकुच्चन में घर के अंदर रहने वाली अच्छी और बूरी स्वभाव की बहुओं का बखान भी कम नहीं होता, वहीं यहां पहंची बहुएं भी अपनी सास की पोल खोलने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ती. इसके अलावा कभी उनकी बड़ाई से भी जमीन-आसमान फटने लगता है, तो कभी अपनी पारी यानि बारी पर अनाज भुनवाने के लिए झगड़े के शोर से ही सारा माहौल गुलजार हो उठता है. वैसे इस घुनसार को चलाने वाली वह महिला बड़ी ही समझदार होती हैं, तभी तो वह सुनती सबकी है, किंतु सबको मैनेज करअपना काम निकाल लेती है. गांव की धरती पर यह घुनसार आज भी जीवित हाल में हर जगह विद्यमान हैं. हां, अब सर्वत्र अनाज भुनवाने की मजदूरी में बदलाव जरूर हो गया है. पहले अनाज भुजाई की मजदूरी अनाज ही था, अब उसके बदले नगद रुपए लग रहे हैं. शहरों में इसके विकल्प के रूप में लोग घर पर ही भले ही भूंजा भुन कर तैयार कर लें रहे हैं, किंतु घुनसार के भुने भुंजा का कोई जबाब ही नहीं.
पुरुष करते हैं जलावन का इंतजाम, घरवाली भुनती है अनाज
हर गांव का घुनसार संबंधित पति-पत्नी के तालमेल से ही संचालित हो पाता है. पति दिन भर गांव के जंगल-झार काट कर घर पर जमा करते हैं और उनकी पत्नी उसी जंगल-झार को जलावन के रूप में इस्तेमाल कर गांव भर का अनाज भुनती हैं. उनकी रोजी-रोटी का आधार भी यही घुनसार है.
शादी-विवाह के रस्म से भी जुड़ा है घुनसार
यह घुनसार केवल लोगों का अनाज भुनने के लिए ही खास नहीं है. यह शादी-विवाह के एक रस्म से भी बखूबी जुड़ा है. घर में जब लड़का और लड़की की शादी होती है, तो इसी घुनसार पर गाजे-बाजे के सांथ घर की महिलाएं जाती हैं और उचित नेग देकर धान भुनवा कर आती हैं और वहीं धान का लावा, शादी के मंडप में प्रयोग किया जाता है.