गाजीपुर से विकास राय
गाजीपुर जनपद में मुहम्मदाबाद-चितबड़ागांव मार्ग पर करीमुद्दीनपुर थाने के समीप है मां कष्टहरणी देवी का दिव्य मंदिर. मां के दर्शन के पश्चात भगवान राम के साथ बक्सर जाते समय लक्ष्मण ने बाराचवर ब्लाक के उत्तर दिशा में रसड़ा के लखनेश्वरडीह नामक स्थान पर लखनेश्वर महादेव की स्थापना की थी, जो आज भी लखनेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है.
इसे भी पढ़ें – अयोध्या से बक्सर जाते वक्त राम ने किया कष्टहरणी का दर्शन
(और जानिए क्या है कष्टहरणी धाम का महाहर डीह और श्रवण डीह से कनेक्शन)
अब आपको ले चलते हैं, द्वापर में जब धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाइयों, द्रौपदी एवं कुल गुरु धौम्य ॠषि के साथ अज्ञातवास के समय मां कष्टहरणी धाम में आकर मां से अपने कष्टों को दूर करने के लिए प्रार्थना किए थे. मां के आशीर्वाद से महाभारत के युद्ध में पांडवों की विजय हुई. जैसा मां का नाम है, उसी के अनुरूप आप वास्तव में अपनें भक्तों का कष्ट दूर करती हैं. राजसूय यज्ञ के समय भीम हस्तिनापुर से गोरखपुर श्री गोरखनाथ जी को निमंत्रण देने जाते समय भी मां कष्टहरणी का दर्शन पूजन किए थे.
इसे भी पढ़ें – दैहिक-दैविक-भौतिक सब ताप हरती हैं मां कष्टहरणी
कलयुग में बाबा कीनाराम जी को स्वयं मां कष्टहरणी ने अपने हाथ से प्रसाद प्रदान कर सिद्धियां प्रदान की थी, बाबा कीनाराम कारों से रोजाना अपने गुरु जी के सो जाने के पश्चात मां के पास आ जाते थे और गुरु जी के जागने से पहले वापस कारो पहुंच जाते थे. एक दिन गुरु जी ने कीनाराम जी से पूछ दिया तो उन्होंने सच सच बता दिया कि मैं मां कष्टहरणी की सेवा में चला जाता हूं.
इसे भी पढ़ें – साक्षात माता के समान होती हैं कन्याएं
गुरु जी ने कीनाराम जी को जाने से तो नहीं रोका, लेकिन हिदायत दिया था कि वहां का कुछ भी खाना नहीं. एक दिन स्वयं मां ने अपने हाथ से कीनाराम जी को प्रकट होकर प्रसाद देकर सिद्धी प्रदान की. गुरु जी के द्वारा यह जानने पर खुद उन्होंने कीनाराम जी को कहा कि जाओ अब तुम्हारे में वह सभी योग्यता हो गयी है. अब समाज का कल्याण करो. वहां से बाबा वाराणसी के गंगा तट पर पहुंचे तथा एक गंगा में बहते शव को देख कर बोले कि तुम कहां जा रहे हो. बाबा कीनाराम जी की आवाज सुनकर वह मुर्दा उठ खड़ा हुआ. बाबा कीनाराम ने उसका नाम जियावन रखा. मां के आशिर्वाद से बाबा कीनाराम जी का यह पहला चमत्कार था.