गुरुवार को जिले में नदियों का जलस्तर : बाढ़ नियंत्रण कक्ष की सूचना के अनुसार गंगा नदी का जलस्तर गायघाट में 57.67 मी है. घाघरा नदी का जलस्तर डीएसपी हेड पर 62.390 मी, चांदपुर में 57.20 मी तथा मांझी में 54.50 मी है. टोंस नदी का जलस्तर पिपरा घाट में 58.10 मी है. सभी नदियां घटाव की ओर है.
बैरिया (बलिया) से वीरेंद्र नाथ मिश्र
गंगा व घाघरा का पानी उतरने के साथ बन्धों पर शरण लिए लोग अब अपने घरों को वापस लौटने लगे हैं. वापस लौटेने वाले लोगों का जीवन अब कुछ दिनों तक आंगन से बाहर तक कीचड़ में गुजरने वाला है. घर से बाहर आकर आश्रय लेने और फिर अपने घर वापसी में परिस्थितियां काफी कुछ बदल गयी है. सिर छिपाने, भरण पोषण के साथ ही तरह तरह की बीमारियों के प्रकोप के शिकार व उसकी आशंका तले कुछ दिन आगे तक उन्हे जीवन बिताना हैं.
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ज्ञात रहे कि बैरिया विधानसभा क्षेत्र में गंगा व घाघरा बाढ़ व कटान आपदा के समय बैरिया बलिया बांध (एनएच 31), टेंगरही, संसारटोला तटबन्ध, जयप्रकाश नगर, चांददियर बन्धा, ठेकहां, बकुल्हां बन्धा, पुरानी रेलवे लाइन व श्रीनगर, तुर्तीपार तटबन्ध पर लगभग 50 हजार परिवार अपने मवेशियों के साथ शरण लिए थे. गंगा बाढ़ व कटान प्रभावित पीड़ितों का संकट विशेष रहा, ऐसे में सरकार व समाज के जागरूक वर्ग का इन पर विषेश ध्यान रहा. उत्तरी दियरांचल के घाघरा प्रभावित लोगों पर सरकार व समाज दोनों की कृपा कम दर कम रही. अब जब लोग अपने घरों को वापस लौटने लगे है. वापसी के रास्ते व घर से बाहर तक कीचड़ ही कीचड़ है.
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सरकार सिर्फ बन्धे पर आश्रय लेने वालों को ही राहत देगी. ऐसी चर्चा आम हो जाने के बाद कुछ गरीब तो कुछ धूर्त किस्म के लोग अभी घर वापसी में लेट लतीफी ही करना चाहते है. काफी गांवों में लोग वापस लौट कर अपना छान्ही, छप्पर ठीक करने में जुट गए है. इस आपदा की घड़ी में समाज ने अपने दायित्वों का बखूबी निर्वाह किया. इस बार के बाढ़ कटान आपदा में शिक्षक, समाजसेवी, शिक्षण संस्थान, स्वयंसेवी संगठन, राजनीतिक दलों के लोग, यहां तक कि जन सामान्य भी खुले दिल से बिना किसी भेद भाव के लोगों तक पका पकाया भोजन, चूड़ा, लाई आदि पहुंचाया.
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यह कहने में गुरेज नहीं कि क्षेत्रवासियों ने किसी भी पीड़ित को भूखा सोने नहीं दिया. यह भावना अभूतपूर्व थी. गांव गांव भोजन तैयार करने व पहुचाने की होड़ सी मच गयी थी. राहत देने वालों को पानी से घिरे गांवों में जाकर घर घर भोजन पहुंचाने के लिये नाव की व्यवस्था करने में सरकारी तन्त्र असफल होता बार बार दिखा, तब एनडीआरएफ वालों को भोजन वितरित करने के लिए लोग सौंप कर आने लगे.
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सरकारी तन्त्र चूका लेकिन लोगों द्वारा आने वाला भोजन कम नहीं हुआ. अब जब लोग गांवों में वापस लौटने लगे है, तो यहां से सरकार की बारी शुरू हो रही है. यह तो समय के गर्भ में है कि सरकार पीड़ितों को स्थापित होने में, स्वास्थ्य सेवाओं से कितना संतुष्ट कर रही है.
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