बलिया से कृष्णकांत पाठक
अगस्त क्रांति 1942 मे बलिया के लोग आजादी पाने के लिए अग्रेजी हूकुमत से लड़ रहे थे. सुखपुरा मे भी क्रांतिकारियों की फौज खड़ी थी. बलिया के तरफ जा रहे पांच सिपाहियों का बंदूक 18 अगस्त को सुखपुरा में क्रांतिकारियों ने छीन लिया.
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साथ ही उनकी वर्दी उतरवा ली. धोती पहना कर उन्हें बलिया भेजा गया. बौखलाए अंग्रेज अधिकारी 23 अगस्त को सुखपुरा पर धावा बोल दिए. सुखपुरा के लोग गांव छोड़कर भाग गए. सबसे पहले अंग्रेज अधिकारी महंत यदुनाथ गिरी के घर पहुंचे. महंत तो नहीं मिले. पीछे के दरवाजे से छत फांद कर भाग गए. अंग्रेजों ने उनके हाथी और कुत्ते को गोली मार दी.
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उसके बाद अंग्रेज वर्दी उतरवाने के समय अंग्रेज सिपाहिओं को परेशान करने वाले गौरी शंकर के घर पहुंचे. वह घर पर ही छिपे थे. अंग्रेज सिपाही ने उन्हें गोली मार दी. मौके पर उनकी मौत हो गई. इसी बीच अंग्रेजों को कांग्रेसी चंडीगढ़ मिल गए. अंग्रेजों ने जब उनसे कांग्रेसी होने के बारे में पूछा तो उनका जवाब था कि वे कांग्रेसी हैं, तब अंग्रेजों ने उन्हें भी गोली मार दी. इस हमले के बाद कुलदीप सिंह गांव छोड़कर भाग गए और आज तक वापस नहीं लौटे. उन्हें भी शहीद का दर्जा दिया गया. जब देश आजाद हो गया तो कस्बे में इन शहीदों की याद में स्मारक बनाया गया और प्रत्येक 23 अगस्त को विविध कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. सुबह में जहां स्कूल के बच्चे प्रभात फेरी निकालते हैं. वही शाम को स्मारक समिति के लोगों द्वारा आयोजित गोष्ठी में प्रबुद्ध जनों की सहभागिता होती है.
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