कुंडीडीह में एक पिता को है सऊदी अरब से आऩे वाले उसके बेटे के शव का इंतजार

सिकंदरपुर (बलिया)। इंतजार की घड़ियां लंबी और बेदर्द होती हैं. एक-एक पल बड़ी मुश्किल से कटती है. एक दिन एक युग मालूम पड़ता है. मानसिक अशांति का एक लम्बा दौर झेलना पड़ता है. ऐसे ही विषम परिस्थिति से क्षेत्र के कुंडीडीह गांव निवासी सऊदी अरब में मृत अच्छे लाल वर्मा के परिवार को जूझना पड़ रहा है. इंतजार है उस अच्छेलाल के शव का वहां से आने का, जिसकी हत्या दो सप्ताह पूर्व हो गई थी.

उसके शव के इंतजार में समूचे परिवार को अव्यवस्थित और घर का अधिकांश काम रोक दिया गया है. जब तक मृतक का अंतिम संस्कार नहीं हो जाएगा, परिवार वालों को उसकी याद रुलाती और अशांत करती रहेगी. वैसे भूलना एक वरदान है, किंतु परिवार के इस होनहार को भूल पाना तब तक संभव नहीं है, जब तक की उसकी अंत्येष्टि नहीं हो जाती. यह तथ्य है कि समय सबसे बड़ा मरहम है, पर समय का मरहम अंत्येष्टि के बाद ही काम कर सकेगा. तात्कालिक रूप से तो परिवार वाले भगवान और अपनी किस्मत को कोस रहे हैं.

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आज इंतजार एक बोझ बनकर अच्छेलाल के मां -बाप, भाई और पत्नी पर टूट पड़ा है. एक ऐसा बोझ जिसे ना तो ढ़ोते न हीं उतारते बन पा रहा है. पिता ओकार वर्मा चिंता में लीन है कि आगे क्या होगा ? परिवार के अन्य सदस्य गम में डूबे हुए हैं. अच्छे लाल के बच्चों को पता ही नहीं है कि परिवार में क्या से क्या हो गया. उनके घर की जिंदगी कितनी बदल गई. दिनचर्या प्रभावित है. जबकि यह बच्चे अपने में मस्त हैं. आज परिवार के लोग एक दूसरे को सांत्वना तो दे रहे हैं किंतु अकेले होने पर स्वयं रो-रोकर समय काट रहे हैं. यह तब तक चलेगा जब तक कि अच्छे लाल का शव सऊदी से घर ना जाए.

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