


सिकंदरपुर (बलिया) से संतोष शर्मा

उनकी उपेक्षा कर भगवान भरोसे छोड़ दिए जाने तथा जल संरक्षण के प्रति हमारी बेपरवाह प्रवृत्ति का ही फल है कि आज पानी का संकट लगातार बढ़ता जा रहा है. पूर्व में नगर में तीन दर्जन से ज्यादा कुएं, एक दर्जन छोटी बड़ी गडहियों सहित आधा दर्जन पोखरे हुआ करते थे. उपेक्षा व लोगों की स्वार्थ लिप्सा के कारण सभी कुएं मिट्टी से पट गए. अनेक पोखरे व बड़ा ही अस्तित्वहीन हो गई, जबकि अतिक्रमण के चलते कई अस्तित्व ही न होने के कगार पर हैं.
इन्हीं में एक है नगर के मोहल्ला मिल्की स्थित प्राचीन व विशाल गड़बोड़ा गड़ही. जिसका आधा भाग अतिक्रमण से अस्तित्वहीन हो गया है. बच्चे भाग पर भूमाफियाओं की वक्र दृष्टि लगी हुई है. सफाई के अभाव में यह अच्छी चली और गंदगी का पर्याय बनी हुई है. उससे निकलने वाला सड़ांध बदबू मोहल्लावासियों के परेशानी का सबब बना हुआ है. उस का अधिकांश भाग दलदल हो गया है. यह गड़ही अतीत में न केवल जल संरक्षण का स्रोत थी, बल्कि नगर के एक बड़े भाग के बरसाती पानी के निकासी का प्रमुख साधन भी थी.
वर्षा काल में विभिन्न भागों से भरकर आने वाला पानी इसमें पहुंच कर इकट्ठा होता था. जहां से अतिरिक्त पानी नालों के माध्यम से ताल सिवान कला में चला जाता था. समुचित निकासी के चलते कहीं भी जलजमाव की स्थिति पैदा नहीं होती थी. अतिक्रमण व निकासी के रास्तों के बंद हो जाने से अब बरसात के दिनों में यह उफना कर समस्या पैदा कर रही है. अनेक जगह जलजमाव की स्थिति पैदा होने के साथ ही घड़ी का गंदा पानी दर्जनों मकानों में घुस जाता है. आवश्यकता है गर्मी के अस्तित्व रक्षा व सफाई की बंद पड़े, निकासी के मार्गों को खुलवाने की किंतु इसे कौन करेगा जनता स्वय सेवी संगठन अथवा प्रशासन में बैठे लोग यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है.