भारत में तो भ्रष्ट, पांच फीसदी से भी कम लोग हैं – चंद्रशेखर

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की जयंती पर विशेष
चंद्रशेखर जी आजादी की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर 14 अगस्त 1997 को रेडिफ डॉट कॉम पर लोगों के सांथ चैट के लिए उपलब्धं हुए थे और उनके ऐसे सवालों का खुलकर जबाब दिया, जो लोगों को आज भी मथते हैं. लवकुश सिंह प्रस्तुत कर हैं तब के समय के कुछ चनिंदा सवाल-जबाब के मुख्य अंश

चंद्रशेखर जी, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के भाषणों में भ्रष्टा चार और उसके खिलाफ अभियान चलाने को लेकर बड़ी-बड़ी बातें होती हैं. क्या आपकों लगता है कि हमारे समाज से भ्रष्टा चार का खात्मा़ संभव है ?

मै राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से सहमत नहीं हूं. भारत में करीब 95 फीसदी लोग कड़ी मेहनत के बाद जीने लायक साधन जुटा पाते हैं. मात्र पांच फीसदी लोगों के पास ही भ्रष्ट होने के मौके हाते हैं. इनमें भी कुछ फीसदी लोग अपना काम पूरी ईमानदारी और गरिमा के सांथ करते हैं. इस तरह भ्रष्टाचार में लिप्त केवल कुछ फीसदी लोगों से ही देश नहीं बनता है. यह दर्भाग्य पूर्ण है कि जो लोग, जिम्मेवारी वाले पदों पर बैठे हैं, वह दुष्प्रचार में जुटे हैं और भ्रष्टाचार की चर्चा इस प्रकार करते हैं, मानों यह पूरे देश में फैली सबसे बड़ी समस्यां है. असल में यह उच्च् पदों पर बैठे लोगों के इच्छांशक्ति की कमी का नतीजा है. जरूरत इस बात की है कि जो लोग इस स्थिति में बदलाव लाने की स्थिति में हैं, उन्हें केवल आदर्शवादी भाषण देने के बजाय, भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए काम करना चाहिए.

चंद्रशेखर जी, आप कहते हैं कि देश में पांच फीसदी लोग ही भ्रष्ट हैं, तो फिर चारा से लेकर जूता घोटाले तक देश में लगातार नए-नए घाटाले क्योंप सामने आ रहे हैं ? हम अब किसका हवाला दें इस देश में ?

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मैं यह नहीं कहता कि देश में पांच फीसदी लोग भ्रष्ट ही हैं. मै तो कहता हूं कि देश में मुश्किल से पांच फीसदी लोगों के पास ऐसे मौके हैं, जो चाहें तो भ्रष्ट हो सकते हैं, किंतु इनमें से काफी संख्या ऐसे लोगों की है, जो पूरी ईमानदारी के सांथ अपना काम कर रहे हैं. भ्रष्टाचार की खबरें लगातार मीडिया में छाए रहने का मुख्य कारण यह है कि राजनेताओं को निजी रंजिश में आरोप-प्रत्यारोप लगाने में एक प्रकार से मजा आता है. मेरा मानना है कि ऐसे मामलों में जांच पुलिस की ऐसी शाखा द्वारा कराई जानी चाहिए, जिसमें राजनेताओं का किसी प्रकार का हस्तक्षेप न हो. मै इस बात का कोई औचित्य नहीं समझ पाता कि नेता एक-दूसरे के खिलाफ आरोप लगाने के लिए, मंच के रूप में ससंद का इस्तेेमाल करते हैं.

सर, देश में वह कौन सा व्यक्ति स्थान रखता है, जो आपकी नजर में अगले 50 वर्षों के लिए भारत के विकास का मार्गदर्शक बन कर उभर सकता है ?

आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने देश के लोगों को गूढ़ संदेश दिया था. निर्भय बनों, फिर कोई तुम्हे हरा नहीं सकता. आज हमारे देश में अश्लील और दिखावटी जीवन शैली कई तरह के समाजिक तनावों का कारण बन रही है. जबकि हमारे धर्म ग्रंथों एवं संत महात्माओं ने सदियों पहले से यह कहा है कि हमेशा उपलब्ध संसाधनों के सांथ ही जीना सीखों, सदा जीवन और उच्च विचार को जीवन में आगे बढ़ने का सुत्र बनाओ. यह कोई नारा नहीं था, बल्कि देश की समृद्धि के मद्देनजर जनता को मेहनत के लिए उत्साहित करने की एक रणनीति थी. आज हमें फिर से अपने प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहने की जरूरत है, जो अभी भी बहुतयात उपलब्ध हैं. इसके अलावा अपने लोगों के बीच बेहतर सामंजस्य स्थापित करने की जरूरत है, जो बहुत थोड़े संसाधनों मे संतुष्ट हैं. यह दुनिया बहुत ही निर्दयी है. यदि हम खुद की मदद नहीं करेंगे तो, कोई दूसरा हमारी मदद करने नहीं आएगा. इस भावना के सांथ यदि हम आगे बढ़ें, तो देश के सामने ऐसी कोई समस्या नहीं है, जिसे हम खुद हल नहीं कर सकते हैं.

चंद्रशेखर जी, भारतीय लोकतंत्र के बारे में आपके विचार क्या हैं ? मुझे लगता है कि सत्ता वर्ग ने लोकतंत्र की अवधारण का दुरूपयोग किया है. क्या आप इस संबंध में अपनी राय से अवगत कराने की कृपा करेंगे ?

भारत में लोकतंत्र की जड़ें जम रही हैं. यह न केवल आजादी के बाद पांच दशकों में हासिल अनुभवों के कारण संभव हुआ है, बल्कि लोकतंत्र हमारे देश की संस्कृति और स्वभाव से बना है. आज से करीब दो हजार साल पहले, दुनिया का पहला लोकतंत्र इसी भारत के वैशाली में स्थापित हुआ था. द्धितीय विश्वयुद्ध के बाद एशिया, अफ्रिका और लातिन अमेरिका के बहुत से देशों ने अपने यहां लोकतंत्र का प्रयोग किया, किंतु भारत अकेला देश है, जहां कई तरह की जटिल समस्यायओं एवं चुनौतियों के बावजूद, यह अब भी कायम है. हालांकि आजादी के बाद पहली बार जिन लोगों को शासन करने का अवसर मिला, उनमें से कुछ ने भारत में लोकतंत्र को खत्म करने का विचार भी दिया था, बावजूद इसके देश में लोकतंत्र का कायम रहना, हमें आश्वस्त करता है कि आज की तमाम चुनौतियों और समस्याओं के बावजूद, यहा लोकतंत्र आगे भी कायम रहेगा.

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