


लवकुश सिंह
मुख्यमंत्री के रूप में बीजेपी में काफी मंथन के बाद मनोज सिन्हा का नाम आने से पूर्वांचल में खुशी की लहर दौड़ गई है. वैसे अभी दो नाम प्रकाश में आ रहे हैं, किंतु मनोज सिन्हा का नाम काफी मजबूती से सामने आया है. गाजीपुर के सांसद और केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा अपने जनपद के मोहम्मदाबाद तहसील के मोहनपुरा गांव के साधारण परिवार से हैं.
मनोज सिन्हा के छात्र संघ अध्यक्ष से लेकर केंद्रीय मंत्री तक पहुंचने के सफर को उनके क्षेत्र के लोग बड़े ही अपनत्व से याद करते हैं. गाजीपुर सिटी स्टेशन से पूर्वी छोर पर बसे उनके गांव को जाता वह रास्ता अब परिचय का मोहताज नहीं है. पिछले लोक सभा में इस गांव के रहने वाले मनोज सिन्हा ने न सिर्फ लोकसभा चुनाव के चक्रव्यूह को भेदते हुए जीत हासिल की, बल्कि नरेन्द्र मोदी के विश्वसनीय होने के कारण दो महत्वपूर्ण मंत्रालय की जिम्मेदारी भी हासिल की. मोहनपुरा गांव के बीचो बीच खपरैल का एक घर मनोज सिन्हा का पुस्तैनी घर है. कभी इसी घर के आंगन में मनोज सिन्हा ने अपने तीन भाइयों के साथ खेलते कूदते अपना बचपन बिताया होगा.
घर के चंद कदमों की दूरी पर ही स्थित प्राथमिक विद्यालय से मनोज सिन्हा ने शिक्षा प्राप्त कर गांव के ही इंटर कॉलेज से दसवीं कक्षा तक की पढ़ाई पूरी की. गणित और विज्ञान के विषयों में उत्कृष्ट प्रर्दशन के आधार पर जनपद के राजकीय सिटी इंटर कॉलेज में इंटरमीडिएट (विज्ञान) में दाखिला लिया. सिटी इंटर कॉलेज में आईएससी के पहले वर्ष में ही बीएचपी के संपर्क में आए और उसके कार्यक्रमों में हिस्सा लेने लगे. स्कूली दिनों में बीएचपी के संपर्क में आने के बाद मनोज सिन्हा के दिलों दिमाग में राजनीतिक महत्वकांक्षा ने घर कर लिया. इंटरमीडिएट की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास होने के बाद घर वालों के सलाह पर बीटेक की पढ़ाई करने मकसद से इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में छात्र रहे मनोज सिन्हा ने छात्र राजनीत में अपना पांव रखा और आगे चल कर बीएचयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुए. छात्र संघ अध्यक्ष रहते हुए मनोज सिन्हा को कई सरकारी विभागों से नौकरी का ऑफर मिलता रहा, किंतु उन अवसरों को दरकिनार करते हुए मनोज सिन्हा ने राजनीत को ही अपना करियर बनाने का संकल्प कर लिया था.

निरंतर राजनीतिक गतिविधियों में अहम भूमिका अदा करने का ही नतीजा था कि मनोज सिन्हा भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए. सन 1996 तक राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहने के साथ ही 1996 के लोकसभा चुनाव में पहली बार विजय हासिल की और गाजीपुर से सांसद चुने गए. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बनी बीजेपी सरकार मनोज सिन्हा का दो महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री के तरफ से दी गई. ऐसा नहीं है कि मनोज सिन्हा के लिए राजनीतिक सफर फूलों का सेज रहा हो. ढाई दशक के राजनीतिक करियर में मनोज सिन्हा को कई बार हार का भी सामना करना पड़ा.
यह दुखद रहा कि जब वह बलिया से चुनाव लड़े थे, तब शायद किसी को भी उनके कद का पता नहीं था. शायद इसीलिए बलिया के लोगों ने मजबूती से उनका सांथ नहीं दिया. बदलते राजनीतिक परिदृश्य में, विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिले पूर्ण बहुमत के बाद अब मनोज सिन्हा के मुख्यमंत्री बनने की बात भी सियासी हलके में मुखर हो चुकी है. ऐसे में विकास के क्रम में पीछे रह गए पूर्वांचल के लोगों को भी एक उम्मीद की किरण दिख रही है कि जिस तरह मनोज सिन्हा ने गाजीपुर में रेल नेटवर्क को व्यापक कर जिले को कई सौगात दिए हैं. वैसे ही मनोज सिन्हा का मुख्यमंत्री बनना पूर्वांचल के समग्र विकास के प्रस्थान बिन्दु के तौर पर देखा जा सकता है. मनोज सिन्हा की 01 मई 1977 को सुल्तानगंज, भागलपुर की नीलम सिन्हा से शादी हुई. उनकी एक बेटी है जिसकी शादी हो चुकी है और एक बेटा है, जो एक टेलीकॉम कम्पनी में काम कर रहा है.
मनोज सिन्हा भूमिहार जाति से आते हैं, जो यूपी में बहुसंख्यक नहीं है, यूपी में कुल आबादी के करीब एक से डेढ़ फीसदी ही भूमिहार हैं. अगर मनोज सिन्हा मुख्यमंत्री बनेंगे तो ऐसा दूसरी बार होगा जब कोई भूमिहार जाति का मुख्यमंत्री बनेगा. अब नजर कल लखनऊ में होने वाली विधायक दल की बैठक पर है, जिसमें औपचारिक रूप से मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगेगी और इसके बाद अमित शाह मुख्यमंत्री के नाम का एलान करेंगे.