फेफना (बलिया) से संतोष शर्मा
विधानसभा चुनाव में फेफना विधान सभा क्षेत्र में भाजपा, सपा और बसपा में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बनी हुई है. विधानसभा क्षेत्र में इस जबर्दस्त कांटे के मुकाबले में जहां राजनीति के पंडित भी किसी भी प्रत्याशी के जीत हार के फैसले को लेकर आश्वस्त नहीं दिख रहे हैं. वहीं चुनाव के मैदान में ताल ठोक रहे तीनों प्रत्याशी अपनी अपनी जीत भारी बहुमत से सिद्ध करने का अपना फार्मूला जनता के सामने रख रहे हैं.
भाजपा के वर्तमान विधायक और प्रत्याशी उपेन्द्र तिवारी को पिछली बार 51,151 मत मिले थे. सुभासपा से भाजपा के गठबंधन के बाद राजभर और कुशवाहा समाज सहित कुछ अन्य वर्ग के मतों को जोड़ कर उपेंद्र तिवारी इस बार अपनी जीत सुनिश्चित मान रहे हैं. शायद यही वजह है कि वे बैंड बाजे के साथ क्षेत्र में गांव गांव में जनसम्पर्क कर रहे हैं.
इसी तरह क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व करने वाले और वर्तमान एमएलसी अम्बिका चौधरी इस बार बसपा के झंडे तले मैदान में है. चौधरी को पिछले चुनाव में प्राप्त 47,504 मत मिले थे. इस बार बसपा के पैतीस हजार बेस वोट के साथ अन्य वर्गों में अपने व्यक्तिगत सम्बन्धों को जोड़कर वे अपनी जीत के प्रति अश्वस्त हैं.
इस बार सपा से चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं संग्राम सिंह यादव. सपा सरकार के विकास के कार्य एवं अखिलेश यादव की लोकप्रियता ही उनकी पूंजी है. पिछली बार कौमी एकता दल के प्रत्याशी के रूप में उन्हें 47 हजार मत मिले थे. सपा कांग्रेस गठबंधन के बूते वे भी अपनी जीत पक्की मान रहे हैं.
इस तरह तीनो प्रत्याशी अपनी अपनी गणना जनता में सिद्ध कर रहे है. परिणाम क्या होगा, यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन फेफना विधानसभा में जबरदस्त त्रिकोणीय मुकाबला है और इस बार के चुनाव में सबसे ख़ास बात ये है की जाति और धर्म की दिवाले ध्वस्त होती हुई प्रतीत हो रही है. जनता जाति पांति से ऊब कर विकास करने वाले और प्रगतिशील सोच वाले प्रत्याशी को चुनना चाहती है. लेकिन सीमित विकल्प है और पिछले विधान सभा चुनाव में जो प्रत्याशी मैदान में थे, वे ही इस बार भी चुनावी परिदृश्य में है. हां दो प्रत्याशियों द्वारा पार्टी बदल देने से बहुत मतदाता इस असमंजस की भी स्थिति में है कि व्यक्तिगत सम्बन्ध के चलते नेता विशेष को अपना मत दे या पार्टी के आधार पर अपना मत पार्टी के सिद्धांतों पर दें.