भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर की जयंती पर विशेष
जयप्रकाशनगर (बलिया) से लवकुश सिंह
असीमीत जमीनी जानकारी, सपाट शैली व अलौकिक इल्म ने तब के ‘लोकगायक’ भिखारी ठाकुर को अंतर्राष्ट्रीय उंचाई दी. अति सामान्य इस व्यक्ति की लोक समझ, शोध प्रबंधों का साधन बन गई. भोजपुरी के प्रतीक भिखारी ठाकुर अपनी प्रासंगिक रचनाधर्मिता के कारण भारतीय लोक साहित्य में ही नहीं, सात समुंदर पार मारीशस, फीजी, सूरीनाम जैसे देशों में भी अत्यंत लोकप्रिय हैं. संचार क्रांति की लहरों पर तिरता भोजपूरी लोकधुन लहरों का यह राजहंस, आज देश काल पर भाषा की वंदिशों को लांघता विश्व लोकसंस्कृति की धरोहर बन बैठा है. आज उसी लोक कवि भिखारी ठाकुर की जयंती है. इस दिवस पर हम उनके जीवन की एक संक्षिप्त पड़ताल करें तो नाटय प्रशिक्षण संस्था एनएसडी में उनकी कृति विदेशिया व लोक नाट्य शैली के रूप में पढ़ाए जाते हैं.
गांधी के समकालीन भिखारी ठाकुर अपने नाटकों में वहीं संदेश दे रहे थे, जो बापू अपने राजधर्म में दे रहे थे. बापू के समाजोद्धार विषयक विचार ही लोक कलाकार भिखारी ठाकुर के कालजयी नाटक, नौटंकियों में बेटी बेचवा, भाई विरोध, विदेशिया और गबरघिचोर के मूल कथानक हैं. मलाल यह कि भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के वंशज आज पूरी तरह उपेक्षा का शिकार हैं. उनके पौत्र राजेंद्र राय, बिहार के छपरा जिले के कुतुबपुर दियारा में गंगा-सरयू से घिरे स्थान पर रहते हैं. वहीं प्रपौत्र नियाजित शिक्षक हैं.
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सिताबदियारा से था गहरा नाता
सिताबदियारा निवासी सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि भिखारी ठाकुर का सिताबदियारा से गहरा नाता था. वह जब तक जीवित थे, तब तक सिताबदियारा के गरीबा टोला में दशहरे के दिन उनका कार्यक्रम अवश्य होता था. उनके जाने के बाद भी कुछ वर्षों तक उनकी मंडली यहां प्रतिवर्ष अपना कार्यक्रम देने आती थी. आज 18 दिसंबर को उनकी जयंती है, किंतु दखद यह कि भोजपुरी क्षेत्रों में भी उस लोक कवि को लोग भूलते जा रहे हैं.