बतकुचन – कहां दब गई पूर्वांचल की आवाज      

विधानसभा चुनाव: न तो राजनीतिक दलों और न ही स्थानीय स्तर पर है कोई सुगबुगाहट            

इलाहाबाद से आलोक श्रीवास्तव

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के सात चरणों में से पहले चरण का चुनाव 11 फरवरी को पश्चिम उत्तर प्रदेश से शुरू हो गया. पूर्वांचल में अंतिम चरण में 4 और 8 मार्च को चुनाव है. लोकसभा का चुनाव हो या विधानसभा का, पूर्वांचल राज्य बनाने का मुद्दा जरूर उठता है. लेकिन इस बार खामोशी दिख रही है. दलों की कौन कहे स्थानीय स्तर पर भी आवाज नहीं उठ रही है.

समाजवादी पार्टी का रुख साफ है. वह राज्य के विभाजन के खिलाफ है. भाजपा का कोई नजरिया ही नहीं है. कांग्रेस तेलांगना राज्य बनाने के बाद मौन साध लिए है. बसपा ने 2011 में राज्य के विभाजन का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा था. सूबे को चार भागों में बांटा था. पूर्वांचल, बुंदेलखंड, पश्चिम प्रदेश और अवध प्रदेश. इस बार मायावती न तो पूर्वांचल की बात कर रही हैं और न ही मूर्तियां बनाने की. बात विकास की हो रही है.

पूर्वांचल राज्य बनाने के लिए सबसे पहले आवाज ग़ाज़ीपुर के विधायक विश्वनाथ सिंह गहमरी ने 1962 में उठाई थी. इसके बाद प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने पटेल कमीशन बैठाई, फिर सेन कमीशन बनी लेकिन कोई परिणाम नहीं निकला. आवाजें उठीं पर परिणाम शून्य ही रहा. पूर्वांचल राज्य के लिए बिहार के कुछ जिलों जैसे -आरा, बक्सर, भभुआ, सासाराम, सीवान, छपरा को भी शामिल किया गया है, लेकिन यह बिहार सरकार पर निर्भर है कि वह इन ज़िलों को पूर्वांचल राज्य के लिए देती है या नहीं. इसलिए इस पर विचार करना ही निरर्थक है. बात सिर्फ यूपी के जिलों की ही करनी चाहिए.

प्रस्तावित पूर्वांचल पर एक नजर

जिले- आजमगढ़, बलिया, मऊ, ग़ाज़ीपुर, वाराणसी, मिर्ज़ापुर, सोनभद्र, भदोही, चंदौली, जौनपुर इलाहाबाद, प्रतापगढ़, गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, संतकबीरनगर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती.

जनसंख्या- करीब 8 करोड़

जन प्रतिनिधि – विधायक – 158, सांसद 30 (वर्तमान में यूपी विधानसभा की 403 सीटें हैं)

मंडल – बस्ती, गोरखपुर, वाराणसी, आजमगढ़, मिर्ज़ापुर, इलाहाबाद.

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