घूरे की तर्ज पर राजनीतिक दलों छोटे कार्यकर्ताओं के दिन फिरे

रसड़ा (बलिया) से संतोष सिंह

विधान सभा चुनाव का बिगुल बजते ही पार्टी के छोटे कार्यकर्ताओ को मनाने का दौर चालू हो गया है. कल तक पार्टी में हासिए पर रहने वाले छोटे छोटे कार्यकर्ताओं की पूछ बढ़ गयी है. रूठे हुए कार्यकर्ताओ का मनाने का कार्य भी  जोरों पर जारी है. कल तक ठगी सा महसूस करने वाले कार्यकर्ता समय की नजाकत देख  पुरे फ़ॉर्म में है.

अपने नेताओ एवं वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को खरी खोटी सुना भी रहे है. भला हो भी क्यों नहीं, चुनाव में जोर शोर से तन मन धन से अपने पार्टी प्रत्याशी के लिये  मऱने मिटने वाले कार्यकर्ताओं को चुनाव बाद भुला सा दिया गया था. स्वभिमानी कार्यकर्ता अपना कर्तव्य समझ कर पूरी निष्ठा से कार्य करता है, चाहे वह किसी भी पार्टी का कार्यकर्ता हो. नेताओ में भले ही आपसी वैमनस्यता न हो, परन्तु पार्टी कार्यकर्ता अपनी पार्टी के लिये चट्टी चौराहों पर हमेशा ही विरोधी से लोहा लेते रहते हैं.

नेताओं द्वारा केवल भाषण दिया जाता है की कार्यकर्ता पार्टी के रीढ़ होते हैं, परन्तु वास्तविकता कुछ और है. छोटे छोटे  कार्यकर्ता केवल चुनाव एवं रैलियों तथा आन्दोलन के समय ही याद आते हैं. हर पार्टी के छोटे छोटे  कार्यकर्ता अपने नेता एवं वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की उपेछा से आहत एवं नराज हैं. ये कार्यकर्ता अपना नाराजगी एवं आक्रोश भी खुल कर व्यक्त कर रहे हैं. सभी प्रत्याशियों को अभी अपने हासिए पर रहे कार्यकर्ताओं को मनाने में ही पसीना छूट रहा है. कार्यकर्ता ही प्रचार प्रसार के साथ साथ चुनाव के दिन मतदाताओं को बूथ तक पहुंचाते हैं.  निश्चित ही जो भी नेता अपने कार्यकर्ताओं को अधिक से अधिक जितना जल्द से जल्द मना लेगा, विजय श्री उसके कदम चूमेगी.

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