जयप्रकाशनगर बलिया से लवकुश सिंह
हर साल की तरह इस साल भी बारिश के मौसम में सर्प दंश घटनांए भी खूब हो रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में तो ऐसे मामले रोज सुनने को मिलते है, जहां सर्प दंश के बाद लोग सीधे तौर पर झाड़-फूंक पर ही ज्यादा भरोसा करते हैं. चिकित्सीय व्यवस्था की याद तो उन्हे तब आती है, जब पीड़ित के हालात काबू करने लायक ही नहीं होती. तब की स्थिति में डॉक्टरों के पास भी कुछ भी विकल्प नहीं होता.
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अमवा के सती माई व सेमरिया है झाड़-फूंक का ठिकाना
ग्रामीण क्षेत्रों में जब भी कोई सर्प दंश की घटनाएं होती है तो लोग सेमरिया मुक्तिधाम या फिर हालात ज्यादा बेकाबू होने पर बलिया के बांसडीह रोड स्टेशन के पास अमवा के सती माई के स्थान पर झाड़-फूंक के लिए ले जाते हैं. इसके अलावा और भी ऐसे दर्जनों स्थान हैं जहा, सर्पदंश से पीडि़त लोगों का उपचार झाड़फूंक से किया जाता है. इस चक्कर में बहुत सी जाने लगातार जा रही है, इसके बावजूद भी आम लोगों की ऐसी मान्यता है कि सर्प दंश की घटनाएं झाड़-फूंक से ही ठीक हो सकती हैं. विज्ञान चाहे लाख तरक्की कर ले, लोगों के दिमाग से यह ख्याल निकालना असंभव सा लगता है.
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रामपुर कोड़रहा भी बन गया झाडफूंक का नया ठिकाना
अभी एक साल से अमवा के सती माई का एक नई शाखा रामपुर कोडरहा ढाले पर भी खुल गई है. खबर है कि यहां भी अब सर्प दंश के पीडि़त लोग झाड़फूंक के लिए पहुंच रहे हैं. इतना ही नहीं, इस विज्ञान युग में यहां अन्य रोगों का उपचार भी हो रहा है.
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चिकित्सीय उपचार को हमेशा दें प्राथमिकता : डा नवीन सिंह
इस संबंध में बलिया के उप मुख्य चिकित्साधिकारी चतुर्थ व समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सोनबरसा में तैनात डॉ. नवीन सिंह से पूछने पर कहते हैं कि सर्प दंश का एक मात्र उपचार चिकित्सीय उपचार ही है. मरीज को अगर तत्काल यह सुविधा मिल गई तो उसकी जान बच जाने की संभावना बढ़ जाती है. कहा कि अधिकतर मामलों में यह देखा जाता है कि झाड़-फूंक में जब हालात काफी बिगड़ जाते हैं तब लोग पीडि़त को अस्पताल लेकर पहुंचते हैं. बताया कि अब तो इसके लिए स्पेशल इंजेक्शन निकल चुके हैं. अब सर्प को पहचाने की भी कोई जरूरत नहीं है, सिर्फ पीडि़त व्यक्ति समय से अस्पताल पहुंच जाए तो, उसे बचाया जा सकता है.
कौन-कौन सर्प हाते हैं जहरीले
नाग (कोबरा), काला नाग, नागराज, करैत, कोरल वाईपर, रसेल वाईपर, ऐडर डिस फालिडस, मावा, वाईटिस स्नेक, क्राटेलस हारिडस आदि
दंश स्थान तक कैसे पहुंचता है विष
सांपों के दांतों में विष नहीं होते. ऊपर के छेदक दातों में विष ग्रंथि होती है. ये दांत कुछ मुड़े होते हैं. सर्प दंश के समय जब दांत धंस जाते हैं तब उन्हें निकालने के प्रयास में सांप अपनी गर्दन ऊपर कर झटके से खींचता है. उस दौरान विष ग्रंथि के संकुचित होने से विष निकल कर अंक्रांत स्थान तक पहुंच जाता है.
सर्प दंश के लक्षण
- दंश स्थान पर तीव्र जलन, तंद्रालुता, मिचली वमन, अंग घात, अवसाद, अनैच्छिक मल मूत्र त्याग आदि.
सर्प दंश के मामलों में तत्काल क्या करें
- सर्प दंश स्थान से कुछ उपर रस्सी, रबर या कपड़े से ऐसे कस कर बांधें कि धमनी का रूधिर प्रवाह रूक जाए.
- लाल गर्म चाकू से दंश स्थान को आधा इंच लंबा काटकर रक्त निकाल दें.
- सांप का दांत यदि रह गया हो तो उसे चिमटी से निकाल दें.
- सांस रूकने पर कृत्रिम श्वसन का सहारा लें.
- अस्पताल पहुंचकर सर्प दंश का इंजेक्शन लें और चिकित्सीय उपचार कराएं.