महाशिव रात्रि पर सभी चढ़ाते हैं इसी स्थान पर जल
सिताबदियारा से लवकुश सिंह
बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो अपने लिए नहीं, समाज के कल्याण के लिए जीते हैं. कभी सिताबदियारा में ऐसे ही एक महान संत का पदापर्ण हुआ, जिनके बदौलत यहां सेवा दास शिव मंदिर की स्थापना संभव हो सकी. महाशिव रात्रि पर वही शिव मंदिर संपूर्ण सिताबदियारा वासियों के लिए आस्था का केंद्र बन जाता है.
संत सागरदास से जुड़ा है मंदिर का इतिहास
क्षेत्र के लोग भी उस महान संत के व्यक्तिगत जीवन के विषय में बहूत कुछ ज्यादा नहीं जानते. दरअसल उन्होंने अपने व्यक्गित जीवन के विषय में लोगों को बहुत कुछ बताया भी नहीं. बताते हैं कि आजादी से पहले ही 1930 के आसपास सिताबदियारा में बंगाल के एक संत सेवादास बाबा अपने शिष्य सागरदास के सांथ यहां आए थे. कुछ दिन यहां रहने के बाद सेवादास बाबा यहां से जंगल की ओर तपस्या के लिए निकल गए. अपने शिष्य सागरदास को यहां इसलिए छोड़ गए ताकि वह इसी पावन धरती पर जनकल्याण के कार्यों में लग जांए. हुआ भी यही. सागरदास इस धरती पर कई जनकल्याण से जुड़े कार्य किए. सागरदास की मंशा थी कि उनके गुरु के नाम से यहां कुछ हो, तभी यहां संपूर्ण सिताबदियारा वासियों के प्रयास से एक भव्य शिव मंदिर की स्थापना की गई, जिसका नामकरण सेवाश्रम सेवादासधाम किया गया. इतना कुछ करने के बाद भी सागरदास ने अपना नाम कहीं नहीं जोड़ा. अपना संपूर्ण जीवन ही समर्पित कर दिया अपने गुरु सेवादास के नाम. उनके ही प्रयास से उस स्थान पर सेवादास शिव मंदिर, बाग-बगीचे, धर्मशाला आदि आज भी स्थापित हैं.
महाशिवरात्रि पर उमड़ती है भीड़
इस मंदिर पर महाशिव रात्रि पर सुबह से ही सिताबदियारा वासियों की भीड़ गंगा स्नान के बाद उमड़ने लगती है. इस क्षेत्र के महिला-पुरुष इसी शिव मंदिर पर भगवान शिव को जल चढ़ाते हैं. इसके अलावा वर्ष भर यहां कोई न कोई धार्मिक अनुष्ठान भी चलते रहता है.
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