सिकंदरपुर -अफसाने को अंजाम तक न सही, खूबसूरत मोड़ तक पहुंचने की है छटपटाहट

बकौल साहिर लुधियानवी वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे इक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा. ऐसे ही एक खूबसूरत मोड़ का इंतजार है सिकंदरपुर नगरी को. हरे परिधानों से युक्त गुलाबी रंग में पूर्णरूपेण नहाई हुई सिकंदरपुर नगरी जो गुलाब की खेती के लिए अपनी प्रसिद्धि को आज तक कायम रखने में कटिबद्ध रही है, किंतु इस सुंदरता और कामयाबी की लरी से जिनका रिश्ता रहा, आज भी अपने भाग्य को कोसने पर मजबूर दिखाई देते हैं. यह विदारक दृश्य उस क्षेत्र की है, जिस में आए दिन अपने ही बीच से इस प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत अपने अगुवाओं को सरकार में भेजने का काम किया. सिकन्दरपुर (बलिया) से संतोष शर्मा की रिपोर्ट

वैसे तो हर कोई अपनी मीठी चुपड़ी बातों से सिकंदरपुर की जनता को समय समय पर छलने का ही काम किया है. हर निगाहें समय आने पर उस चेहरे को तलाशने का काम करती है, जो शायद सिकंदरपुर के भविष्य को तराशनें का काम करें, किंतु हर समय मौका मिलने पर. लेकिन, परंतु जैसे शब्दों में अपने अस्तित्व को सिमटता दिखाई देता है. साहित्य दर्पण के प्राचीन या आधुनिक पन्नों को अगर पलट कर देखें तो पाते हैं कि गुलाब के फूलों से तैयार इत्र, गुलाब रोदन तथा गुलाब सकरी सहित अनेक प्रकार के सुगंधित तेल व खाद्य पदार्थ जो मानव जीवन की जरूरतों से संबंध रखते हैं, तमाम खुबियों को स्वयं में समेटें केवल सिकंदरपुर नगरी को ही नहीं, बल्कि देश विदेश की हर कोने में अपनी प्रसिद्धि को प्राप्त किए हुए है.

इन सारी विशेषताओं के साथ केवल मानव ही नहीं अपितु साहित्यिक पन्ने से बेशुमार खूबसूरती का बखान करने में पीछे नहीं हटते, किंतु आज इन जनप्रतिनिधियों और सरकारों के उदासीनता के कारण नगर के व्यवसायियों के तरफ अगर नजर दौड़ाएं तो पाते हैं कि आज इस वर्तमान समय में अपने भाग्य पर पश्चाताप करते हुए कुछ व्यवसायी तो अपने व्यवसाय से मुख मोड़ चुके हैं और कुछ थके हारे उदासीन व्यवसाय से निजात पाने की फिराक में दिखाई देते हैं. 

अगर ऐसे ही राजनेताओं और सरकारों की कुदृष्टि का शिकार यह क्षेत्र होता रहा तो निश्चित ही वह दिन दूर नहीं कि इस व्यवसाय से जुड़ा हर किसान जो अपने परिश्रम के पसीने से सीचते हुए इन्हें वह सूरत प्रदान करता है, जिससे इस क्षेत्र को गुलाबों की नगरी की समृद्धि प्राप्त होती है. हमेशा के लिए अपनी परिभाषा से वंचित हो जाए. इसका कारण समय के साथ सामंजस्य स्थापित कर सरकारों द्वारा इसका उचित मूल्य न निर्धारित करना है. बुजुर्गों ने कहा है कि काश कोई हमसफर इसमें रंगत फिर से ला देता. अपनी नेक नियत से इस नगरी को महका देता.

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