
बैरिया (बलिया)। जन प्रतिनिधियों व उच्चाधिकारियों की उदासीनता के चलते प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कोटवा के अस्तित्व पर सवालिया निशान खड़े हो गए हैं. यह कितने ही हैरत की बात है कि जब चारों तरफ विकास की होड़ लगी हुई है, वही बैरिया ब्लाक के लिए स्थापित इकलौते प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को लेकर लोग कहते हैं कि यह अस्पताल डेढ़ दशक पहले जैसा होना चाहिए. इसके प्रति न तो जनप्रतिनिधियों मे कोई गंभीरता है, और न ही विभागीय उच्चाधिकारियों में.
बताते चलें डेढ़ दशक पहले तक इस अस्पताल पर अच्छे चिकित्सक नियमित रहा करते थे. लगभग लगभग 80 हजार की आबादी इस चिकित्सालय से स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करती थी. लेकिन अब ऐसा नहीं है. कहने को तो यहां दो नियमित और दो संविदा पर चिकित्सक तैनात हैं. यहां तैनात एमओआईसी विगत 3 सप्ताह से नहीं आ रहे हैं. शेष 3 चिकित्सक यहां स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे हैं. यहां औसतन 150 रोगी नित्य देखे जाते हैं.

यहां तैनात चिकित्सक और कर्मचारी बलिया आवास लेकर रहते हैं और ट्रेन से आते जाते हैं. उनकी भी मजबूरी है. चिकित्सक और कर्मचारियों के लिए बनाए गए आवास जर्जर हैं. किसी भी रूप में रहने लायक नहीं है. जिस कक्ष मं बैठकर चिकित्सक रोगियों को देखते हैं, उस कक्ष के भी प्लास्टर टूट कर गिर रहे हैं. जबकि यहा दो वर्ष पहले ही दीवारों की मरम्मत की गई थी. ऐसी दशा में कर्मचारी और चिकित्सक यहां ठहरते ही नहीं.
रानीगंज बाजार के पूर्व व्यापार मंडल अध्यक्ष जितेंद्र सर्राफ का कहना है कि यहां की सुविधाओं के प्रति, जनता के स्वास्थ्य सेवा के प्रति जनप्रतिनिधि नाम मात्र के भी गंभीर नहीं है. जब सांसद व विधायक निधियां व पूर्वांचल विकास निधि जैसी आर्थिक व्यवस्था विकास के लिए नहीं थी, तब तो यह अस्पताल बहुत अच्छा था. लेकिन अब यहां के हालात बद से बदतर हैं. रानीगंज बाजार के व्यापारी नेताओं ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कोटवा पर चिकित्सकों व कर्मचारियों के टिकने लायक आवासीय व्यवस्था उपलब्ध कराकर उन्हें अस्पताल पर ही उपलब्ध रहने के लिए बाध्य करने की मांग की है.
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जननी सुरक्षा योजना पर भ्रष्टाचार की छाया
विश्व स्वास्थ्य संगठन के धन से चलाई जा रही अति महत्वाकांक्षी योजना जननी सुरक्षा योजना इस स्वास्थ्य केंद्र पर पूरी तरह से भ्रष्टाचार के आगोश में है. यहां प्रसव केंद्र पर आने वाली ग्रामीण महिलाओं से प्रसव के उपरांत जननी सुरक्षा योजना अंतर्गत मिलने वाले 14 सौ रुपए से ज्यादा ही किसी न किसी तरह से प्रसव कराने वाली एएनएम द्वारा वसूल कर ली जाती है. कभी-कभी तो उससे अधिक भी वसूला जाता है. जहां किसी तरह की शिकायत होने या पैसा ना मिलने की बात होती है वहां एएनएम प्रसूता को तुरंत रेफर कर देती हैं. हालात कैसे हैं, इसका अंदाजा इस इस बात से लगाया जा सकता है की हर गांव में तैनात की गई आशाएं किसी प्रसूता को अस्पताल ले जाने के बजाए निजी नर्सिंग होम में ले जाने में अधिक रुचि दिखा रही हैं. क्षेत्र में फैले हुए नर्सिंग होमों पर अक्सर आशायें प्रसूताओं के साथ देखी जाती है. पूछे जाने पर एक आशा ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि एक प्रसव पर छः सौ रुपये वह भी बहुत विलम्ब से मिलता है. उसमे भी कमीशन देना पड़ता है. इन जगहों पर सिर्फ रोगी पहुंचा देना है. भुगतान तुरन्त मिल जाता है, लेकिन इस कार्य मे नर्सिग होम वाले प्रसूता परिवार का बडे बेरहमी से आर्थिक शोषण करते है. जिला मुख्यालय के नर्सिग होम संचालक आशाओं से सीधे सम्पर्क मे रहते हैं.
लगभग हर गाव मे आशायें तैनात हैं, लेकिन किसी को कहीं का केस लाने की अघोषित छूट है. एक हजार आबादी पर औसतन बारह प्रसव प्रति वर्ष का आकड़ा सरकारी मान्य है. लेकिन अपने कार्य क्षेत्र के बाहर से कहीं से प्रसव लाकर एक आशा के नाम पर दर्जनों प्रसव दर्ज होते हैं. प्रसव कहीं हो रजिस्टर पर चढ़ाने के लिए एएनएम पटा ली जाती है. अगर आशाओं को अपने कार्य क्षेत्र के ही केस देने हो तो भी सक्रियता बढ़ सकती है. आशाओं को प्रेरित करने के लिये आशाओ में सी आशा संगिनी बनायी गयी. लेकिन इन्हे प्रसव कराने के लिये केस ले जाने से मना कर दिया गया. ऐसे ये अपने सम्पर्क में आने वाली प्रसूताओं को सीधे निजी नर्सिग होम ही ले जाती हैं.