जेपी के गांव से लवकुश सिंह
आज संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती है. धार्मिक दृष्टिकोण से आज दशहरा भी है. आज ही के दिन राम ने रावण वध किया था. वहीं आज ही दिन 11 अक्टूबर को सिताबदियारा की धरती पर एक ऐसे लाल का जन्म हुआ, जिसके कारनामों से भारतीय इतिहास आज भी गौरवांतित होता है. उसी महा पुरूष का नाम है जयप्रकाश. बड़े ही सौभाग्य से इस वर्ष विजय दशमी और दशहरा दोनों एक सांथ हैं. आज के दिन हम देश की राजनीति में उसी महापुरूष को सामने रख मंथन करें तो जेपी देश के नेताओं के काम आज भी वक्त-वेवक्त आ ही जाते हैं. जब-जब आपातकाल की बरसी आती है, जयप्रकाश नारायण देश भर के लिए अनिवार्य हो जाते हैं. उसके बाद वैकल्पिक हो जाते हैं, और फिर धीरे-धीरे गौण. जब कभी चुनाव आता है तो वही जेपी भ्रष्टाचार के प्रतीक बन जाते हैं और चुनाव चला जाता है कि तो उन्हें छोड़ सब भ्रष्टाचार के मामलों में बचाव करने में जुट जाते हैं. जयप्रकाश नारायण हमारी राजनीति में वक्त बेवक्त काम आते ही रहते हैं. सार्वजनिक रूप से इतिहास को ऐसे ही देखा जाने लगा है.
जेपी के मुद्दों पर अब कौन है गंभीर ?
यह भी अच्छा ही है कि आज की सरकारें या नेता गण जेपी को दिल से याद नहीं करते. याद करते भी हैं तो सिर्फ रस्म अदायगी के लिए. सभी ने मिलकर जब जेपी के मुल्यों की ही तिलांजलि दे दी है, तो वह जेपी को दिल से याद ही क्यों करें. किसी ढ़ोंग से क्या लाभ ? आज सारा देश इस बात से अवगत है कि काग्रेसियों के लिए आजादी से पहलें के जेपी और गैर कांग्रेसियों के लिए आजादी के बाद के जेपी महत्वपूर्ण रहे हैं. कुछ अपवादों को छोड़ दें तो आज की सरकारें या नेता न तो 1947 के पहले न उसके बाद के जेपी को दिल से याद करते हैं. 1969 के बाद जब कांग्रेस में एकाधिकारवादी प्रवृति हावी हुई तो जेपी ने एक लेख लिख डाला. वह अपने भाषणों में भी उसका उल्लेख करते थे. तब वह सक्रिय राजनीति में नहीं थे, पर इस बात को लेकर चिंतित थे कि जो नेता या दल अपने संगठन में लोकतंत्र नहीं चला सकता वह लोकतंत्र कैसे चलाएगा. इंदिरा जी से मतभेत का कारण भी यही लेख बना.
जेपी आज होते तो देखते कि आज कितने दलों के संगठनों में तानाशही कायम हो चुकी है. कभी जेपी के सांथ रहने वाले कद्दावर नेता भी आज जेपी के विपरीत राहों पर चलते दिख रहे हैं. ऐसे लोग यदि जेपी को दिल से याद नहीं करते तो अच्छा ही करते हैं.
वर्ष 1974-75 में जेपी आंदोलन के चार प्रमुख मुद्दे थे-महंगाई, बेरोजगारी, भष्टाचार और गलत शिक्षा नीति. आज कौन सी सरकार इन समस्याओं को सुलझाने के प्रति गंभीर है. ये सभी मुद्दे आम जनता से जुड़े हुए हैं. आज राजनीति का मतलब ही बदल गया है. जेपी के मूल्यों को स्थापित करने की कोशिश कहीं नहीं है. आज चुनाव हो या अन्य उत्सव उसमें जेपी जरूर होते हैं किंतु उनके वह मुद्दे गायब होते हैं. आज के किसी भी चुनाव में जेपी के इन मुद्दों की चर्चा नहीं होती. अब तो धर्म, जाति, भ्रष्टाचार, परिवारवाद, वोट बैंक उठा-पटक को आधार बना राजनीति की जा रही है. आज के दिन एक बार फिर जेपी की जयंती पर वहीं रस्म अदायगी की देश भर में होगी. उनकी सोच का बखान होगा. उनके आर्दशों पर चलने का संकल्प भी बहुत से लोग लेंगे. जेपी को मानने वाले राजनीति से बाहर के लोग यह मानते हैं कि आज जेपी का नाम सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए ही लिया जा रहा है. उनकी सोंच से किसी को कोई सरोकार नहीं है. ऐसी स्थिति में हमारे रहनुमा जेपी की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि नहीं उनके विचारों की तिलांजलि ही तो देते हैं. यदि वह दिल से लोकनायक को याद करते, उनकी राहों पर चलते तो आज भारत की तस्वीर भी कुछ और होती.
सिताबदियारा में अब जेपी का सबकुछ हो गया दो भाग
समय का चक्र भी अजीब होता है. कभी दिल्ली की सरकार के लिए बलिया की सीमा में पड़ने वाला जयप्रकाशनगर का जेपी निवास खास था. जेपी जयंती पर संपूर्ण दिल्ली जयप्रकाशनगर में ही जमा होती थी, अब जेपी के नाम पर सियासी राजनीति ने भी करवट लिया और जेपी भी दो भागों में विभक्त हो गए. अभी के समय में हम सिताबदियारा के संपूर्ण चित्र पर गौर करें तो जेपी के जीवन काल में ही बना यूपी सीमा का जेपी निवास अब केंद्र के द्धारा पूरी तरह उपेक्षित कर दिया गया है. केंद्र सरकार की नजरों में अब जेपी मतलब बिहार, ही रच बस गया है. यह स्थिति वर्ष 2010 से पहले नहीं थी. वर्ष 2001 से 2003 तक के जेपी जयंती समारोह पर ही हम गौर करें तो वर्ष 2002 और 2003 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के नेतृत्व में यहां जेपी जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन था. तब के समय में उप राष्ट्रपति भेरो सिंह शेखावत से लेकर, प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी, जगमोहन, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, गोविंदाचार्य, सुष्मा स्वराज, राजनाथ सिंह, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सहित दर्जनों कद्दावर लोगों ने जयप्रकाश नगर में ही जेपी की प्रतिमा पर अपना माथा टेका था. यह क्रम लगातार जारी था, तभी चंद्रशेखर चल बसे, और केंद्र सरकार का नाता भी इस स्थान से खत्म हो गया. गांव के लोग बताते हैं कि जयप्रकाशनगर में स्थित जेपी का यह मकान 1952 में स्वयं जेपी ने ही बनावाया था. वर्ष 1986 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के प्रयासों से यहां जेपी स्मारक ट्रस्ट के तहत विशाल जेपी स्मारक का निमार्ण कराया गया. कहते हैं इस ट्रस्ट के निमार्ण के समय खुद चंद्रशेखर जी खड़ा होकर एक-एक कार्य कराते थे. उन्हीं के प्रयासों से केंद्रीय पर्यटन मंत्री जगमोहन ने इसे पूरी तरह सजाने का जिम्मा लिया. तब से यह ट्रस्ट सारे देश में अलग स्थान भले ही रखता है, किंतु केंद्र सरकार के द्धारा पूरी तरह उपेक्षित है.
और इस तरह बिहार सीमा में भी स्थापित हो गए जेपी
संपूर्ण क्रांति के प्रणेता लोकनायक जयप्रकाश नारायण के गांव छपरा बिहार के सिताबदियारा (लाला टोला) 14 फरवरी 2010 से पहले कोई खास चर्चा में नहीं था. इससे पहले इस गांव को लोग सिर्फ इतना ही जानते थे कि लोकनायक जयप्रकाश नारायण का यही गांव है. इस गांव में विकास की किरणें भी दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती थी. इस गांव की तकदीर बदलनी शुरू हुई 14 फरवरी 2010 से. इस दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी बिहार विकास यात्रा की शुरूआत करने राज्य सभा सांसद हरिवंश के सांथ जेपी के गांव पहुंचे थे. जेपी के क्रांति मैदान चैन छपरा में सभा का आयोजन था. अभी सभा शुरू भी नहीं हुई थी कि लाला टोला से सैकड़ो की तदाद में महिला-पुरूष सभा स्थल पर पहुंच गए. सभी लोगों की एक ही जिद थी कि सीएम नीतीश उनके गांव की दुर्दशा चलकर देखें. लोगों की जिद पर सीएम नीतीश वहां से पैदल ही लोगों के सांथ लाला टोला के लिए निकल पड़े. वहां जाकर उन्होंने देखा तो उन्हे यह महसूस करना पड़ा कि जेपी के नाम पर राजनीति करने वाले, इस गांव के हालात से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं. गांव में गरीबों की बस्ती अपना दर्द अलग से ही बयां कर रही थी. नीतीश कुमार ने तभी से इस गांव के विकास गाथा लिखनी शुरू कर दी.
तब ही की जेपी मेमोरियल हाल बनाने की घोषणा
उसी यात्रा के दौरान जेपी के बिहार सीमा के गांव सिताबदियारा लाला टोला सीएम नीतीश कुमार के जेहन में इस कदर स्थापित हुआ, कि उन्होंने इस स्थल को अपना तीर्थ ही मान लिया. चैन छपरा जेपी के क्रांति मैदान से ही उन्होंने लाला टोला में जेपी मेमोरियल हाल, लाईब्रेरी आदि बनाने की घोषणा कर दी. यहां लगभग 4.35 करोड की लागत से उसका निर्माण कार्य भी शुरू है. गांव में पानी टंकी, बिजली, सड़कें आदि अब सब उपलब्ध हैं.
केंद्र ने की 25 जून को म्यूज्यिम कांप्लेक्स की घोषणा
इसी बीच 25 जून 2015 को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में यह घोषणा की गई कि जेपी के गांव सिताबदियारा बिहार सीमा के लाला टोला में ही में म्यूजियम कांप्लेक्स का निमार्ण कराया जाएगा. केंद्र द्धारा घोषित म्यूज्यिम कांप्लेक्स की नींव भी सिताबदियारा के लाला टोला में डाल दी गई है. इसी स्थान पर केंद्र सरकार राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण भी कराएगी, इसके अलावा यहां शोध अध्ययन केंद्र भी होगा.