कितने परिषदीय स्कूलों में बलिया के अफसरों-शिक्षकों के बच्चे पढ़ते हैं बीएसए साहब

बैरिया (बलिया)। देश के प्रधानमन्त्री से लगायत स्थानीय स्तर पर भी स्वच्छता को लेकर विशेष अभियान चलाया जा रहा है. प्राथमिक शिक्षा भी इससे अछूता नहीं है. जिले के प्रिन्ट व सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा छाए रहने वाले जिले के बेसिक शिक्षाधिकारी राकेश सिंह को जब  गोपालपुर निवासी गुजरात में मेकनिकल इन्जीयर राकेश तिवारी ने सोशल मीडिया के माध्यम से प्राथमिक विद्यालयो में स्वच्छता का सच दिखाया तो बीएसए ने तुरन्त फेसबुक फ्रेन्ड लिस्ट से अनफ्रेन्ड किया, वाट्स ऐप व ग्रुप से भी रिमूव कर दिया.

घुटरू चलने से लेकर जवान होने वाले मेकेनिकल इजी. राकेश तिवारी ने प्राथमिक शिक्षा की पड़ताल ही शुरू कर दी. कहते है कि मैं गुजरात रहते हुए अपने गांव जवार से एक पल भी अलग नहीं रह पाता. सोशल मीडिया व न्यूज पोर्टलों पर बलिया के पल पल की खबर रहती है. फिर भी दूर तो दूर ही है. बेसिक शिक्षा अधिकारी सबसे ज्यादा खबरों में छाये रहते हैं. लकिन यह भ्रमजाल है. वह चापलूसी पसन्द व्यक्ति है. थोडी भी आलोचना उन्हे बर्दाश्त नहीं. उनकी वाहवाही करने वालों का संगठन भी बन गया है, जो उन्हें बाहरी लोगों के लिए राबिन हुड बना कर पेश करता है.

प्राथमिक विद्यालय सहोदरा शिक्षा क्षेत्र दुबहड़ में शनिवार को प्रवेशोत्सव मनाया गया
प्राथमिक विद्यालय सहोदरा शिक्षा क्षेत्र दुबहड़ में शनिवार को प्रवेशोत्सव मनाया गयाkfk

कल पूरे दिन लगभग सभी परिषदीय प्राथमिक विद्यालय की व्यवस्था देखा. जहां भी गया, वहां पर शिक्षक के रूप में शिक्षक कम अपने अधिकारी के चमचे ज्यादा मिले. न्यूज के माध्यम से तो ऐसा लगता था जैसे प्राथमिक विद्यालयों का हालत सुधर गया है, पर यहां तो केवल शिक्षक सस्पेंड बहाली का खेल चल रहा है, जो अध्यापक बीएसए भक्ति में है, वह सेफ है. जो नहीं है,  उसे सस्पेंड कर फिर सेवा के साथ बहाली कर खेल हो रह है.  शिक्षा में सुधार तो केवल समाचार पत्रों, फेसबुक व न्यूज पोर्टलों पर  है. एक भी स्कूल मुझे नहीं मिला, जहां शिक्षा विभाग से जुड़े हुए कर्मचारियों के बच्चे उस विद्यालय में पढते हो.

बीएसए महोदय जनता को समाचार पत्रों, सोशल नेटवर्क के माध्यम से फोटो डाल कर सुधार का ढोंग ही कर रहे हैं. जमीनी हकीकत को सामने लाये. आज भी प्राथमिक विद्यालयो पर शिक्षा नगण्य है. केवल सस्पेंशन व बहाली के खेल से शिक्षा में सुधार नहीं होगा. बच्चों के बस्तों में किताब की जगह प्लेट व ग्लास डाल के क्या साबित करना चाहते हैं. स्वच्छता अभियान में तो प्राथमिक विद्यालय तो अव्वल है. पर धरातल पर कुछ और ही है. हालात ऐसे बन गये हैं कि यहां के शिक्षक भी कई हिस्सों में हो गये हैं. कुछ धन उगाहने व पहुंचाने मे माहिर, कुछ सेटिंग गेटिंग के खिलाडी, कुछ चमचागीरी मे लगे तो कुछ के पीठ पर माननीयो का हाथ, कुछ खुद ही दबंग. बस इसमे नहीं है तो बस बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता मे सुधार की लालसा. अगर कुछ है भी तो वो शिक्षक डरे, दबे कुचले ही हैं. जो अपने दायित्व को निभाते है. सबसे मजे मे बीएसए साहब की वाह वाही वाले है.

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