सहतवार : पैगम्बर हजरत मुहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत पर मुहर्रम की नौवीं तारीख की रात ११ बजे चकमिरान हुसैनाबाद में अंगारों पर चलकर मुस्लिम भाइयों ने मातमपुरसी की. इसे देखने के लिए दूर-दूर से हर समुदाय के लोग आये.
मातम से पहले डाक्टर सैयद क़र्रार अब्बास ने कर्बला में हुई जंग के बारे में बताया. कर्बला की जंग में जुल्म के खिलाफ हजरत इमाम हुसैन इब्न अली अपने मुट्ठी भर समर्थकों के साथ अत्याचारी यजीद की बड़ी फौज के खिलाफ डटे रहे.
यज़ीद चाहता था कि हुसैन उसके साथ हो जाएं. उनके इनकार करने पर यजीद ने हुसैन को रोकना चाहा. 680 ई. हज करने के ख्याल से इमाम हुसैन मदीने से मक्का पहुंचे. तभी उन्हें पता चला कि दुश्मन हाजियों के भेष में आकर उनका कत्ल कर सकते हैं.
इमाम हुसैन इरादा बदल शहर कूफे की ओर चल दिए. रास्ते में दुश्मनों की फौज उन्हें घेर कर कर्बला ले आई. जब इमाम ने बच्चों के लिए पानी मांगा तो उन्होंने इंकार कर दिया. जब हुसैन नहीं झुके तो दुश्मनों ने हुसैन के खेमों पर हमले शुरू कर दिए.
इसके मद्देनज़र शिया समुदाय के लोग हर साल उनका मातम मनाते. नोहा सैय्यद सोहैल बलियावी ने अंज़ूमन हुस्सैनिया पढ़कर मातम किया.
आग के मातम मे मंज़र अब्बास, नेमत अली, सैयद कुमैल अब्बास, जाहिद, हसन अली, ज़ियारत हुसैन, हुसैन अली, टीपू, फ़िरोज़, रेहान, एहतेशाम, ग़ुलाम अब्बास, एक़बाल आदि ने भाग लिया ।