अलविदा! कृष्णा सोबती, बहुत याद आएगा आपका बेबाकपन

स्त्री मन की गांठ खोलने वाला आपका सृजन

नई दिल्ली। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित
वरिष्ठ साहित्यकार कृष्णा सोबती नहीं रही. जिंदगीनामा उपन्यास के लिए कृष्णा सोबती को 1980 में मिला था साहित्य अकादमी पुरस्कार. 94 साल की उम्र में निधन, 18 फरवरी 1924 को गुजरात (वर्तमान पाकिस्तान) में हुआ था जन्म.
निधन- निधन 25 जनवरी 2019 को, लम्बी बीमारी के बाद, सुबह साढ़े आठ बजे, एक निजी अस्पपताल में.

कहानी संग्रह
बादलों के घेरे, लम्बी कहानी,
डार से बिछुड़ी, मित्रों मरजानी, यारों के यार, तिन पहाड़, ऐ लड़की, जैनी, मेहरबान सिंह
उपन्यास
सूरजमुखी अँधेरे के, ज़िन्दगी़नामा, दिलोदानिश, समय सरगम, गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान
विचार-संवाद-संस्मरण
हम हशमत (तीन भागों में), सोबती एक सोहबत, शब्दों के आलोक में, सोबती वैद संवाद, मुक्तिबोध : एक व्यक्तित्व सही की तलाश में, लेखक का जनतंत्र, मार्फ़त दिल्ली
यात्रा-आख्यान
बुद्ध का कमण्डल : लद्दाख़

कृष्णा सोबती मतलब ठठाकर हंसता हुआ एक चेहरा…. उनका बिंदासपन वाकई कमाल का था…. जब वह बोलती थीं…. मन करता उन्हें घंटों सुने, बिल्कुल मन में धंस जाती थी…. लेखन की शुरुआत तो उन्होंने कविता से की थी….. मगर फिक्शन ने उन्हें पहचान दी… उनकी की कहानी ‘सिक्का बदल गया’ जिसने भी पढ़ा…. उसके कैरेक्टर शाहनी और शेरा जेहन में रच-बस गए… विभाजन की पीड़ा कहानी की वह जान थी…. ‘मित्रों मरजानी’ हिंदी साहित्य की एक दमदार कृति मानी जाती है. नेहरूवियन नैतिकता से घिरे पढ़े-लिखे लोगों को उनकी रचनाएं डराती जरूर थी…. मगर कृष्णा सोबती का कथा साहित्य उन्हें भय मुक्त भी करता था….. हां, वह साहित्य और देह के वर्जित प्रदेश की यात्रा पर निकल पड़ी थी…. उनके पाठक तो कहते हैं कि उनकी नायिकाएं प्रेम और शरीर की जरूरतों के प्रति किसी तरह के संकोच और अपराधबोध से ग्रस्त नहीं थी…… सेक्स लाइफ के अनुभवों पर उन्होंने बहुत सी कहानियां लिखी…. चार पांच दशक पहले इस तरह का लेखन बेशक साहस का ही परिचायक था…. उनकी कहानियों को लेकर बहुत विवाद भी हुआ…. डॉ. रामप्रसाद मिश्र ने तो दो टूक कहा कि उनके ‘ज़िन्दगीनामा’ जैसे उपन्यास और ‘मित्रो मरजानी’ जैसे कहानी संग्रहों में मांसलता को भारी उभार दिया…. केशव प्रसाद मिश्र जैसे आधे-अधूरे सैक्सी कहानीकार भी कोसों पीछे छूट गए… मगर उनकी हिम्मत को दाद देने वालों में खुशवंत सिंह जैसे दिग्गज पत्रकार और लेखक भी शामिल थे… कृष्णा सोबती ने नारी को अश्लीलता की कुंठित राष्ट्र को अभिभूत कर सकने में सक्षम अपसंस्कृति के बल-संबल के साथ ऐसा उभारा कि साधारण पाठक तक हतप्रभ रह गया… विभाजन के बाद वह दिल्ली में बस गईं…. आरंभिक शिक्षा दिल्ली और शिमला में हुई. इसके बाद वह साहित्य सेवा में जुट गईं…. 1980 में ‘जिन्दीनामा’ के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला…. 1996 में उन्हें साहित्य अकादमी का फेलो बनाया गया… जो अकादमी का सर्वोच्च सम्मान है… नामवर सिंह की अध्यक्षता वाली जूरी ने उन्हें 2017 में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान…. ज्ञानपीठ पुरस्कार… के लिए उपयुक्त माना …. सच तो यह है कि कृष्णा सोबती स्त्री मन की गांठ खोलने वाली एक उम्दा कथाकार थी……..

This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE         
This Post is Sponsored By Memsaab & Zindagi LIVE