
संजय कुमार सिंह (कंसल्टिंग एडिटर)
हमारे ऋषि मुनियों ने जिन जिन स्थानों पर तपस्या किया या निवास किया, बाद में वे क्षेत्र उनके पुण्य के प्रभाव से तीर्थ बन गए. ब्रह्मा के मानस पुत्र और त्रिदेवों की परीक्षा लेने वाले महर्षि भृगु ऐसे ही एक पुण्यात्मा थे, जिन्होंने अपने तप के प्रभाव से देवत्व का स्थान प्राप्त किया.
पौराणिक कथाओं में महर्षि भृगु सप्तऋषि मंडल के एक ऋषि थे. उनकी दो पत्नियां बतायी गईं हैं, पहली हिरणकश्यप की पुत्री दिव्या. देवी दिव्या से दो पुत्र हुए, शुक्राचार्य और विश्वकर्मा. दूसरी पत्नी ऋषि पुलोम की पुत्री पौलमी. पौलमी के भी दो पुत्र च्यवन और ऋचिक बताए गए हैं. विष्णु के दशावतारों मे एक परशुराम, महर्षि भृगु के वंशज माने गए हैं.
संसार को महर्षि भृगु का ऋणी माना गया है, क्योंकि सर्वप्रथम उन्होंने ही अग्नि का परिचय करवाया था. ऋगवेद में कहा गया है कि उन्होंने मातरिश्वन से अग्नि ली, फिर धरा पर लेकर आए. अग्नि से परिचय कराने वाले जिस महाज्ञानी पुरोहित की महिमा पारसी करते हैं, उसका भी सम्बन्ध महर्षि भृगु से ही जुड़ता है.
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भृगु मंदिर समिति, बलिया के अध्यक्ष शिवकुमार मिश्र बताते हैं कि त्रिदेवों की परीक्षा लेने के लिए इनका चयन यह बताता है कि कि महर्षि भृगु कि दिव्यता, योग्यता और विश्व में उनकी मान्यता क्या रही होगी. यह गाथा अनुपम है. श्री मिश्र आगे बताते हैं कि महर्षि भृगु ने ही त्रिदेवों में श्री विष्णु को श्रेष्ठ सतोगुणी घोषित किया था.
क्रमशः