


वीरेंद्र नाथ मिश्र
बलिया की धरती ने अपनी कोख से अनेकानेक देशभक्त, ऋषि, महर्षि, देश भक्त, क्रांतिकारी व साहित्यकार विद्वानों को जन्म दिया है. जो नक्षत्रों की तरह जगमग हैं. इन्हीं कड़ियों में आचार्य परशुराम चतुर्वेदी का नाम अग्रणी है. 25 जुलाई उनका जन्म दिन था और इस साल आचार्य परशुराम चतुर्वेदी जी का जन्मदिन बलिया से चुपके से गुजर गया. यहां यह उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी दूर गंगा की गोद में बसे जवहीं नामक गांव में 25 जुलाई 1894 ई को आचार्य जी का जन्म हुआ था. उनकी शिक्षा दीक्षा इलाहाबाद तथा वाराणसी में हुई. वह पेशे से वकील थे, किंतु आध्यात्मिक साहित्य में उनकी गहरी रुचि थी.
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बताते हैं संस्कृत तथा हिंदी की अनेक उपभाषाओं के वह पंडित थे.बहुत कम लोग जानते हैं कि संत कबीर को जाहिलों की खोह में से निकालकर विद्वानों की पांत में बैठाने का काम आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने ही किया था. कबीर के काव्य रूपों पदावली, साखी और रमैनी का जो ब्यौरा विस्तार और विश्लेषण आचार्य जी ने परोसा है और घुट-घुटकर परोसा है वह आसान नहीं था. उनके बाद ही आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने भी कबीर को प्रतिष्ठा दिलाई. दादू, दुखहरण, धर्मी दास, भीखाराम, पलटू जैसे विलुप्त हो चुके संत कवियों को उन्होंने जाने कहां कहां से खोज निकाला और उन्हें प्रतिस्थापित किया. संत साहित्य के पुरोधा जैसे विशेषण उन्हें यूं ही नहीं दिया जाता.
उत्तरी भारत की संत साहित्य की परख संत साहित्य के प्रेरणा स्रोत आचार्य जी ने नव निबंध, हिंदी काव्यधारा में प्रेम प्रवाह, मध्यकालीन प्रेम साधना, कबीर साहित्य की परख, भारतीय साहित्य की सांस्कृतिक रेखाएं, संत साहित्य की परख आदि रचनाओं के माध्यम से अपनी अमिट पहचान छोड़ी. बलिया के शिक्षा के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा थी. जिसके परिणाम आज जनपद में उनके द्वारा स्थापित लगभग आधे दर्जन शिक्षण संस्थान उनके सामाजिक कृतियों की अक्षय स्मारक के रूप में विद्यमान है. वे साहित्य में विकासवादी सिद्धांत के पक्ष धर थे. उनकी विद्वता के आगे बड़ों बड़ों को हमेशा झुकता देखा गया. उनका जीवन मानवता के कल्याण में बीता.उन्होंने मनुष्य की चिंतन परंपरा की खोज में संत साहित्य का गहन अध्ययन किया था और उसे विस्तार भी दिया था. आज बलिया के गौरव आचार्य परशुराम चतुर्वेदी की जयंती के अवसर पर उन्हें पूरी बलिया लाइव टीम की ओर से शत शत नमन !