रसड़ा (बलिया)| जन सूचना अधिकार अधिनियम 2005 पारित होने के बाद भी अधिकारियों एवम कर्मचारियों की लापारवाही के चलते ये अधिनियम मूल उद्देश्यों से भटक गया है. अधिकारियों एवम कर्मचारियों के कारण ये कानून दम तोड़ दिया है. आरटीआई अब रिजेक्ट टू इनफार्मेशन (सूचना से इन्कार) अधिनियम बन गया है. इस योजना का मुख्य उद्देश्य सुचना मांगने को सूचना आदान प्रदान करना है. सरकार द्वारा लागू इस अधिनियम को सचमुच सही अर्थों में लागू कर दिया जाए तो हर विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है और हर नागरिक को सही एवम गलत कार्यों की जानकारी भी प्राप्त होगी, लेकिन यह कानून बलिया में दम तोड़ती नजर आता है.
कई लोग इस जन सूचना के अधिकार के अन्तर्गत कई विभागों से सूचना मांगते मांगते इस दुनिया को छोड़ गए. बेलगाम होकर कार्य करने वाले अधिकारी एवम कर्मचारी इस कानून को खिलौना समझकर इसे खेल रहे है. एक बानगी के तौर पर रसड़ा नगर के स्टेशन रोड गांधी मार्ग निवासी राजेन्द्र प्रजापति निःसंतान दम्पति आदर्श नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी से सन 2012 से ही फर्जी वारिस प्रमाण पंत्र के आधार पर नामांतरण निरस्त करने हेतु सुचना अधिकार अधिनियम 2005 के अन्तर्गत कुल सात आवेदन दिए, किंतु पाच वर्ष बीत जाने के बाद भी जबाब नहीं मिला. दूसरी सूचना तहसीलदार रसड़ा के यहां भी 2011 से ही इस अधिनियम के अन्तर्गत सुचना मांगा, परन्तु 6 वर्ष बीत जाने के बाद भी कोई सूचना नहीं दी गई. इस तरह अनेक ऐसे लोग हैं, जो इस अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू नहीं होने से निराश एवम हताश हैं. भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने का वादा करने वाली प्रचण्ड बहुमत में आने वाली योगी सरकार से लोगों की ये आस बनी है कि इस कानून को प्रभावी बनाकर लागू करवाए, जिससे कार्यों में पारदर्शिता रहे तथा भ्रष्टाचार पर अकुंश लगाया जा सके. इस सरकार से लोगों को इस कानून को प्रभावी रूप से लागू करने की उम्मीद भी बढ़ गयी है. अब देखना है की यह कानून कब से प्रभावी रूप से कार्य सुचारू रूप से होने लगेगा.