
बिल्थरारोड से अभयेश मिश्र
बिल्थरारोड नगर के उत्तर में सोनाडीह स्थित देवी भागेश्वरी परमेश्वरी मन्दिर पूर्वांचल के ख्याति लब्ध शक्तिपीठों में से एक है. जहां शारदीय नवरात्र के पहले दिन शनिवार के सुबह से ही श्रद्धालुओं की पूजन अर्चन करने के लिए भारी भीड़ रही.
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आस्था और विश्वास का केन्द्र बने मां भगवती के मन्दिर में निष्काम भाव से दर्शन व पूजन करने से सारे पाप धुल जाते हैं. भक्तों को मनोवांछित फल की भी प्राप्ति होती है.
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सोनाडीह शक्तिपीठ के सम्बन्ध में कहा जाता है कि महाहनु नामक एक राक्षस कभी यहां रह करता था. उसके आतंक से लोग भयभीत रहते थे. राक्षस द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों मे विघ्न डालने व अत्याचार करने से चारों तरफ त्राहि त्राहि मची हुई थी. भक्तों की दुर्दशा की अन्तर्नाद को सुनकर मां भगवती अत्याचारी राक्षस महाहनु का संहार करने के लिए उसकी तलाश में निकल पड़ी.
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भगवती को अपने तरफ आते देख राक्षस महाहनु रुक गया और उनके मनोहारी अनुपम सौन्दर्य को देखकर मुग्ध हो गया. उनसे उसने विवाह का प्रस्ताव रखा. राक्षस महाहनु की बात सुनकर भगवती ने कहा कि मेरे नहाने के लिए यदि तुम एक रात में सरयू नदी से नाला खोदकर सोनाडीह तक ला दो तो मैं तुम से विवाह कर सकती हूं. भगवती की बात को सुनकर राक्षस राजी हो गया. शाम होते ही नाला खोदना शुरू कर दिया.
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अभी वह सोनाडीह से कुछ दूरी पहले तक ही नाला खोद पाया था कि सूर्योदय हो गया. अपने वादे में नाकाम होने के बाद भी देवी भगवती से विवाह करने की जिद पर ही वह अड़ा रहा.
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परिणाम स्वरूप देवी व राक्षस महाहनु में संग्राम शुरू हो गया. अन्ततः देवी भगवती ने राक्षस महाहनु का वध कर दिया. राक्षस द्वारा खोदे गए नाले को हाहानाला तथा युद्ध के दौरान गिरे रक्त से ताल का निर्माण हो गया. जो कालान्तर में ताल रतोई के नाम से जाना जाता है. मंदिर परिसर में सैकड़ों की संख्या में लाल बंदर घूमते रहते हैं. जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हीं बंदरों के पूर्वज देवी भगवती की सेना में शामिल थे. वासांतिक नवरात्र में मंदिर परिसर में एक माह मेला लगता है. मंदिर निर्माण के बारे में कहा जाता है कि प्राचीन काल में मंदिर का निर्माण एक मुस्लिम दंपति द्वारा पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होने पर कराया गया था. आज भी गंगा-जमुनी तहजीब देखने को मिलती हैं.
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