मानव की भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन की देन है “ओजोन परत का क्षरण” – डा० गणेश पाठक

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वायुमंडल में धरातल से लगभग 22 से 25 किमी०की ऊँचाई 25 से 28 किमी० की मोटाई में ओजोन गैस की एक परत पायी जाती है,जिसे “ओजोन परत” कहा जाता है. ओजोन गैस में सूर्य की पराबैगनी किरणों को अवशोषित करने की क्षमता होती है, इस लिए ओजोन गैस की यह परत सूर्य की घातक पराबैगनी किरणों को रोककर पृथ्वी के लिए सुरक्षा कवच का काम करती है.

 

ओजोन परत का महत्व

ओजोन गैस विनाशकारी पराबैगनी किरणों के 99 प्रतिशत भाग को अवशोषित कर लेती है और मात्र एक प्रतिशत भाग ही पृथ्वी पर पहुँच पाता है. यदि यह परत न होती तो ये पराबैगनी किरणें सीधे धरती पर आकर भयंकर तबाही मचाती एवं जीव- जगत सहित वनस्पति जगत को भी जलाकर राख कर डालती. यही नहीं इसके प्रभाव से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया लगभग समाप्त हो जाती, जिससे पेड़- पौधों की वृद्धि भी रूक जाती. पराबैगनी किरणों का जीव जंतुओं पर आनुवंशिक प्रभाव भी पड़ता है, जिससे जीवों में आनुवंशिक विकृतियां भी उत्पन हो जाती है. इसके प्रभाव से मनुष्य की त्वचा झुलस जाती है और त्वचा कैंसर हो जाता है. यही नहीं इसके प्रभाव से निमोनिया, ब्रोंकाइटिश एवं अल्सर जैसे रोगों में भी वृद्धि होने लगती है. आँखों में मोतियाबिंद होकर अंधापन को बढ़ावा मिलता है. शरीर की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने लगती है, जिससे रोगों के विरूध्द लड़ने की शरीर की क्षमता समाप्त हो जाती है. साँस संबंधी बीमारियों का भी जन्म होता है. ओजोन की मात्रा में मात्र एक प्रतिशत की कमी से चर्म कैंसर के रोगियों मेंलगभग दो लाख की वार्षिक वृद्धि होती है. ओजोन परत के नष्ट होने से जब सूर्य की बराबैगनी किरणें छिद्र से होकर पृथ्वी के वायुमंडल एवं पृथ्वी की सतह तक पहुँचती हैं तापमान में अतिशय वृद्धि होती है, जिससे भूमण्डलीय तापन में वृद्धि होती है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग भी कहा जाता है. इस तरह इससे जलवायु परिवर्तन की क्रिया भी प्रभावित होती है. पराबैगनी किरणों को अवशोषित करते हुए ओजोन की परत उनकी गर्मी ले लेती है एवं उसे समताप मंडल को दे देती है, जहाँ वायु धाराओं की उत्पत्ति होती है, जिनके प्रभाव से ही पृथ्वी पर स्थिर जलवायु कायम रहती है.

 

ओजोन परत का क्षरण

सबसे पहले 1970 में ब्रिटेन के पर्यावरणविदों ने पता लगाया कि वायुमंडल में ओजोन की मात्र में धीरे- धीरे कमी होती जा रही है. इसके बाद 1974 में अन्टार्कटिका महाद्वीप के ऊपर ओजोन परत में एक बड़ा छिद्र होने का पता चला. इसके बाद 1985-86 में आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड के ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत में छिद्र का पता चला. तब से लेकर वर्तमान समय तक निरन्तर वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन किया जाता रहा है. 1985 से पूर्व केवल उच्च अक्षांशों में ही ओजोन का स्तर घट रहा था, किन्तु बाद के अध्ययनों से यह पता चला कि अब मध्य अक्षांशों में भी ओजोन कवच कमजोर होता जा रहा है. यहीं आर्कटिक अर्थात उत्तरी ध्रुव के ऊपर भी ओजोन परत का क्षरण हो रहा है. किंतु आर्कटिक के ऊपर की छिद्र की तुलना में अंटार्कटिका के ऊपर का छिद्र पाँच गुना पाया गया.

 

ओजोन परत के क्षय के कारण

ओजोन परत के क्षय का प्रमुख कारण मानव की भोगवादी प्रवृत्ति एवं विलासितापूर्ण जीवन है, जिसकी पूर्ति हेतु मानव द्वारा ऐसे-ऐसे कार्य किए गए जो मुख्य रूपसे ओजोन परत के धष्ट होने का कारण बना. अब तक किए गए शोधों कू आधार यह निष्कर्ष निकला है कि भौतिक सुख- सुविधाओं की अधिक से अधिक प्राप्त करने की अंधी दौड़ में लिप्त आधुनिक मानव की करतूत ही ओजोन परत के क्षय का मूल कारण है. वैज्ञानिकों के अनुसार ओजोन की परत में क्लोरीन यौगिकों की मात्रा में अतिशय वृद्धि हुई है, जिसका जिम्मेदार स्वयं मानव है. ओजोन को नष्ट करने वाले कारकों में एक अति महत्वपूर्ण कारण है क्लोरो- फ्लोरो-कार्बन(सी० एफ० सी०), जिसका उपयोग मानव की विलासितापूर्ण वस्तुओं के निर्माण मे किया जाता है. जैसे वातानुकूलन यंत्रों, प्लास्टिक, फोम, रंग-रोगन, फ्रिआन, अनेक दुर्गंधनाशक , कीटनावक, प्रसाधन सामग्री के निर्माण में किया जाता है, जो क्लोरो- फ्लोरो- कार्बन समूह के योगिक हैं. फ्रियोन-11 एवं फ्रियोन- 12 जैसे यौगिकों के ओजोन से क्रिया करने के कारण ओजोन में लगातार कमी होती जा रही है. ओजोन के नष्ट होने का वनों का अंधाधुंध विनाश होना भी है. वनों के विनाश से ऑक्सीजन का निर्माण कम होता जा रहा है, जिससे अंततः ओजोन के निर्माण में भी कमी आती जा रही है. इस प्रक्रिया में ओजोन का क्षय तो धहीं होता, बल्कि ओजोन का निर्रमाण ही नहीं होता है. इसके बाद नाइट्रिक ऑक्साइड एवं क्लोरीन आक्साईड गैसों का विभिन्न माध्यमों से वायुमंडल में प्रवेश करन से भी ओजोन का क्षय हो रहा है. नाइट्रिक आक्साइड गैस ओजोन कू लिए विशेष घातक है. वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधाय पर वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि मिलों – कारखानों से निकलने वाले विषैले धुँओं एवं गैसों, प्रदूषण के बढ़ते स्तर , अंतरिक्ष अनुसंधान के तहत छोड़े जाने वाले राकेटों से भी ओजोन परत में तेजी से क्षरण हो रहा है. वैज्ञानिकों ने विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला है कि यदि थोड़ी सी अवधि के अंतर्गत 125 अंतरिक्ष यानों को छोड़ा जाय तो ओजोन की समूची परत ही नष्ट है जायेगी.

गणनाओं से यह भी ज्ञात हुआ है कि परिवहन राकेटों की कुल 85 उड़ाने प्रतिवर्ष से अधिक होने पर भी ओजोन मंडल का क्षय हो जायेगा.

 

कैसे करें सुरक्षा-

ओजोन कवच की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसी एक देश की नहीं है, कारण कि यह एक भूमण्डलीय पर्यावरणीय समस्या है. किंतु खासतोर से उन दूशों की जिम्मेदारी अधिकक्षबढझ जाती है जो सी० एफ० सी९ गैसों का अधिक उत्पादध एवं उपभोग करते हैं. जिसमें विकसित देश अधिक हैं एवं कुछ विकासशील देश भी हैं. यही कारण है कि समय – समय सी० एफ० सी० गैसों के उत्पादन को कम करने एवं कार्बन- डाइ- आक्साईड आदि विषैली गैसों के उतसर्जन पर रोक लगायी जाती रही है और उसका सकारात्मक प्रभाव भी दिखायी दे रहा है. किंतु सबसे अहम् बात यह भी है कि हम बिलासितापूर्ण ऐसे वस्तुओं का कम से कम उपयोग करें जिनके निर्माण से ओजोन परत का क्षरण होता है. इसका सबक तो हम कोरोना से बचाव हेतु लागू किए गए लाँकडाउन प्रक्रिया सू ही ले सकते है. अप्रैल, 2016 के प्रारम्भ से ही उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन परत मे लगभग 10 लाख वर्ग किमी० क्षेत्र पर एक छिद्र बना हुआ था, किंतु लाकडाउन के दौरान जब सारी गतिविधियां बंद हो गयीं, परिवहन बंद हो गया, कल- कारखाने बंद हो गए, मानवीय गतिविधियां बंद हो गयी़ तो ओजोन परत नष्ट करने के लिए उत्तरदायी घातक गैसों का निकला भी बंद हो गया और परिणाम यह निकला कि यह ओजोन का छिद्र भी भर गया. कारण कि लाँकडाउन के दौरान प्रत्येक तरह के प्रदूषण में कमी आ गयी. इस तयह स्पष्ट है कि निश्चित तौर मानव की गतिविधियां ओजोन परत के क्षरण के लिए विशेष तोर पर जिम्मेदार हैं.