रामायण कान्क्लेव का भव्य आयोजन, भातृप्रेम विषय पर हुई संगोष्ठी

रामायण कान्क्लेव का भव्य आयोजन
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बलिया. महर्षि भृगु की धरती बलिया कलेक्ट्रेट का बहुद्देश्यीय सभागार बुधवार को मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की अयोध्या का प्रतिरूप बन गया. सभागार में ‘रामायण कान्क्लेव’ का भव्य आयोजन हुआ, जिसका शुभारंभ जननायक चद्रशेखर विवि की कुलपति प्रो. कल्पलता पांडेय, अयोध्या के हरिधाम पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य रामदिनेशाचार्य , सीडीओ प्रवीण वर्मा, सीआरओ विवेक श्रीवास्तव व भाजपा जिलाध्यक्ष जयप्रकाश साहू ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया.

इस अवसर पर ‘रामायण में भ्रातृप्रेम’ विषयक संगोष्ठी हुई. वक्ताओं ने अपने-अपने भाई-प्रेम से जुड़े विचार व्यक्त किए, जिसे सुनकर रामभक्त भी मंत्रमुग्ध नजर आए. रामायण कान्क्लेव कार्यक्रम दो चरणों में हुआ. पहले चरण में गोष्ठी व दूसरे चरण में सांस्कृतिक कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को श्रीराम के व्यक्तित्व व कृतित्व से प्रेरित होने की जरूरत पर बल दिया गया.

संगोष्ठी में मुख्य अतिथि प्रो. कल्पलता पांडेय ने अपने सम्बोधन में राम, लक्ष्मण व भरत के प्रेम के साथ-साथ रावण-विभीषण का भी वर्णन किया. उन्होंने आवाह्न किया कि हम सबको अपने ग्रन्थों को जानने की आवश्यकता है. ये ग्रन्थ हमें सही रास्ते पर ले जाने को प्रेरित करते हैं. उन्होंने कहा कि हम सब भाग्यशाली हैं, जो हमारा जन्म भारत भूमि पर हुआ. लेकिन, दुख इस बात का है कि दो सौ वर्षों तक अंग्रेजों के शासन में हमारी शिक्षा प्रणाली को नष्ट कर दिया था. कहा कि एक तरफ अयोध्या थी, जहां चारों भाई राज्य को ‘तुम ले लो, तुम ले लो’ कहते थे. वहीं आज के परिवेश में हम जितने भाई हैं, घरों में उतने बंटवारे होते हैं. कुलपति ने कहा कि आज वही भातृप्रेम की आवश्यकता है जो अयोध्या के श्रीराम और उनके भाइयों में था. अगर हमारे अंदर आसुरी प्रवृत्ति खत्म नहीं हुई तो संस्कृति नष्ट हो जाएगी.

श्रीराम से जुड़े स्थलों पर होगा काम

कुलपति प्रो पाण्डेय ने कहा कि जननायक विश्वविद्यालय में पीजी डिप्लोमा शुरू हुआ है. इसके माध्यम से बलिया के भगवान श्रीराम से जुड़े स्थलों पर काम किया जाएगा, जिसमें स्थानीय जानकारों से भी सहयोग लिया जाएगा. बलिया को महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाएगा, क्योंकि मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम दो-दो बार इस धरती पर आए थे. यह स्थल रामवनगमन के रास्ते में है. पर्यटन की दृष्टि से इसका विकास अतिआवश्यक है.

अयोध्या के हरिधाम पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य दिनेशाचार्य

 

यह कार्यक्रम भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना: दिनेशाचार्य

रामायण कान्क्लेव कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अयोध्या के हरिधाम पीठाधीश्वर जगतगुरू रामानंदाचार्य दिनेशाचार्य ने कहा कि यह रामायण कान्क्लेव सिर्फ कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना है. इस संस्कृति की स्थापना के संवाहक श्रीराम ही हैं. जिस तरह पथिक पेड़ के नीचे बैठकर आराम करके बिना किसी स्वार्थ के वह जगह छोड़ कर जाता है, ठीक उसी प्रकार राम जी अयोध्या छोड़कर वनवास को चले गए. उन्होंने कहा कि संपत्ति का विवाद जीवन में कटुता उत्पन्न करता है. परिवार में विघटन तभी होता है, जब मेरा और तुम्हारा हिस्सा की बात होती है. इन्हीं सम्पत्ति विवाद के मामलों पर अंकुश लग जाए तो यही रामायण और महाभारत की परिकल्पना होगी. जगतगुरू दिनेशचार्य जी ने कहा कि राम जैसा वैराग्य उत्पन्न हो जाए तो भरत जैसे भाई की कमी नहीं होगी.

चित्र को नहीं, चरित्र को पूजने वाला देश है भारत

रामायण के तमाम प्रसंगों का उदाहरण ​देते हुए जगतगुरू दिनेशाचार्य जी ने कहा कि यह देश सम्पत्ति, राज्य को मानने वाला नहीं है. यह चित्र को नहीं, बल्कि चरित्र को पूजने वाला देश है. तमाम विदेशी ताकतें आई और हमारी परंपरा को काटते-छांटते रह गए, पर हमारी संस्कृति व परंपरा कभी नहीं टूटी. यही हमारे देश की पहचान है. हम सबको उन्हीं संस्कृति व परम्परा की जड़ों की ओर लौटना होगा. इन परंपराओं को जीवंत रखने के लिए इस तरह के कार्यक्रम अत्यंत आवश्यक है. रामायण यह बताता है कि यह भी बताता है कि एक तरफ राजदर्शन हो और एक तरफ रामदर्शन, तो हम रामदर्शन की चाह रखेंगे. सिंहासन पर बैठने की लड़ाई तो देखी होगी, पर सिंहासन पर भाई को बैठाने की लड़ाई अयोध्या में ही देखने को मिली थी. दिनेशाचार्य जी ने कहा, ‘हो सकता है कुछ लोगों के मन में यह सवाल पैदा हो कि क्या रामायण कान्क्लेव के आयोजन से सब राम और भरत बन जाएंगे ? इस पर स्पष्ट करना चाहूंगा कि रामकथा सुन अगर कोई राम या भरत बने या ना बने, रावण कभी नहीं बनेगा. श्रीराम और रावण के बीच की मानवीयता को कोई समझ जाए तो रामायण कांक्लेव की यही सार्थकता है.

जननायक चंद्रशेखर विवि की कुलपति प्रो. कल्पलता पांडेय

आयोजन समिति के सदस्य शिवकुमार कौशिकेय ने बलिया के उन प्रमुख धार्मिक स्थलों को बताया, जिनका सीधा सम्बन्ध श्रीराम, माता सीता व भगवान शिव से है. इन स्थलों के बारे में जानकर दर्शक भी काफी उत्साहित नजर आए. स्वागत अयोध्या शोध संस्थान अयोध्या के निदेशक लवकुश द्विवेदी व आभार क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ सुभाष चन्द्र यादव ने जताया. कार्यक्रम में डॉ चंद्रशेखर पांडेय, गणेश पाठक, विजयनारायण ने भी अपने विचार व्यक्त किए. कार्यक्रम में स्वामी बद्री विशाल जी, भाजपा जिलाध्यक्ष जयप्रकाश साहू, सीआरओ विवेक श्रीवास्तव, सिटी मजिस्ट्रेट नागेन्द्र सिंह, कारो धाम के महंत रामशरण दास जी, आयोजन समिति के सदस्य भानु प्रताप सिंह बब्लू, संस्कार भारती के जिलाध्यक्ष राजकुमार मिश्र, भोला प्रसाद आग्नेय सहित सैकड़ों लोग मौजूद थे. संचालन विजय बहादुर सिंह ने किया.

न्यूयार्क से संत डॉ इंद्राणी ने व्यक्त किए अपने विचार

त्रिनिनाद में रहने वाली भारतीय मूल के संत डॉ इन्द्राणी रामप्रसाद ने न्यूयार्क (अमेरिका) से वर्चुवल संवाद किया. उन्होंने कहा कि श्रीराम एक परिवार व राजनीतिक शासक के रूप के आदर्श भाई थे. उनके आदर्शों पर चलकर वैश्विक शांति प्राप्त की जा सकती है. उन्होंने दिखाया कि जब परिवार मजबूत होता है तो संघ मजबूत होता है, जब संघ मजबूत होता है तो राष्ट्र, और जब राष्ट मजबूत होता है तो धर्म की जीत होती है. जब धर्म की जीत होती है तो पृथ्वी पर शांति, समृद्धि व प्रेम का राज होता है. यह सब रामायण से सीखने को मिलता है.

(बलिया से कृष्णकांत पाठक की रिपोर्ट)